मुगल काल में आचार्य हीरविजयसूरी ने समाज हित के अनेक बड़े काम किए: आचार्य विमलसागरसूरी

मुगल सम्राट अकबर को प्रतिबोध दिया था

समभाव की साधना के लिए सामूहिक सामायिक का आयोजन हुआ

गदग/दक्षिण भारत। बुधवार को स्थानीय राजस्थान जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ के तत्वावधान में जीरावला पार्श्वनाथ सभागृह में जगद्गुरु आचार्य हीरविजयसूरीश्वर की 429वीं पुण्यतिथि और जैनाचार्य पद्मसागरसूरीश्वर के 91वें जन्मदिन के उपलक्ष्य में गुरु गुणगौरव समारोह में बोलते हुए आचार्य विमलसागरसूरी जी ने कहा कि मुगल सम्राट अकबर को प्रतिबोध देकर जगद्गुरु आचार्य हीरविजयसूरीश्वर जी ने जैन व हिन्दू प्रजा के हित में अनेक ऐतिहासिक कार्य करवाए थे। 

हिन्दू बने रहने के लिए हिन्दू प्रजा से प्रतिवर्ष वसूला जाने वाला 14 करोड़ सोना मोहरों का जजिया टेक्स जैनाचार्य ने बादशाह को समझाकर माफ करवा दिया था। उन्होंने जैन व हिन्दू तीर्थों की सुरक्षा के लिए अकबर से पट्टे लिखवाकर ले लिए थे। यही कारण था कि उस काल में जैन व हिंदू समाज के अनेक तीर्थ सुरक्षित रह गए। 

भारतीय संस्कृति के विविध पर्वों-त्योहारों के अवसर पर अखंड भारत में करीब 6 माह तक जीवहिंसा प्रतिबंध का आदेश भी आचार्य हीरविजयसूरीश्वर ने अकबर से लागू करवाया था। समाज व धर्म की रक्षा और गौरव के लिए उन्होंने अपने बुद्धि-कौशल्य, ज्ञानप्रतिभा, साहस और साधना की शक्ति का बखूबी परचम लहराया था। परतंत्र भारत के इतिहास में जैनाचार्य की ये उपलब्धियां आत्मगौरव, धर्मगौरव और राष्ट्रगौरव का स्वर्णिम अध्याय है।

उन्होंने कहा कि मुगल दरबार के इतिहासकार अब्बुल फजल, जानेमाने अंग्रेज लेखक विंसेंट स्मिथ और पुर्तगाली पादरी पिंहेरो ने इन ऐतिहासिक तथ्यों के उल्लेख अपने ग्रंथों और डायरियों में किए हैं। अकबर के काल में समुद्री तटों पर ईसाई धर्मांतरण के लिए भारत आए पुर्तगाली पादरी पिंहेरो ने सितंबर 1585 में पुर्तगाल सरकार को लिखे पत्र में मुगल बादशाह अकबर पर जैनाचार्य के गहरे प्रभाव का उल्लेख किया है।

इतिहासकार रामास्वामी अंय्यगार लिखते हैं कि अकबर के दरबार के लेखक अब्बुल फजल ने जैनाचार्य हीरविजयसूरीश्वर के शिष्यों को लाहौर में भव्य महोत्सव कर उपाध्याय के पद से विभूषित किया था। अब्बुल फजल को उन्हीं ने भारतीय दर्शनों और भाषाओं का ज्ञान दिया था। अकबर के निवेदन पर आचार्य हीरविजयसूरीश्वर ने एक चातुर्मास आगरा में, दूसरा लाहौर में तथा तीसरा फतेहपुर-सीकरी में रहकर धर्म और मानवता के अनेक कार्य किए थे।

सिरोही के दरबार राव सुरताण जैनाचार्य के परम भक्त थे। उन्हीं के निवेदन पर सिरोही के जैनसंघ ने भव्य महोत्सव पूर्वक हीरविजयसूरीश्वर को आचार्य पद से विभूषित किया था। जैनाचार्य के भावपूर्ण पत्र के कारण ही सिरोही रियासत के साथ अकबर का दत्ताणी-मुंथला के मैदान में होने जा रहा दूसरा युद्ध सदा के लिए बंद रहा था। महाराणा प्रताप ने प्रभावित होकर पत्र लिखकर जैनाचार्य हीरविजयसूरीश्वर को मेवाड़ आने की विनंती की थी। बेटे सलीम की गलत आदतों से परेशान अकबर ने उसे सुधारने के सिंचन के लिए जैनाचार्य के पास भेजा था। 

गणि पद्मविमलसागरजी ने बताया कि बुधवार को जैनाचार्यों की पुण्यतिथि और जन्मदिन के अवसर पर 325 बालकों, युवक-युवतियों और बुजुर्गों ने आयंबिल का तप किया। दोपहर को समभाव की साधना के लिए सामूहिक सामायिक का आयोजन हुआ।

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