पंजाब सरकार ने अपने स्कूलों की 11वीं कक्षा में उद्यमिता को एक मुख्य विषय के तौर पर पढ़ाने का फैसला कर अच्छी पहल की है। अन्य राज्य सरकारों को भी इस दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए। भारत में बेरोजगारी की जो स्थिति है, उसमें उद्यमिता कई युवाओं के लिए उम्मीद की रोशनी लेकर आ सकती है। देश में 140 करोड़ से ज्यादा लोग होने का सीधा-सा मतलब है- 'बहुत बड़ा बाजार'। यहां फिर भी बेरोजगारी है तो इसका मतलब है- 'व्यवस्था में ही खामियां मौजूद हैं'। देश में बेरोजगारी इसलिए है, क्योंकि यहां सरकारी नौकरी को एकमात्र रोजगार समझ लिया गया है। उद्यमिता को तो अंतिम विकल्प माना जाता है। युवाओं के मन में यह बात बैठा दी गई है कि 'आपको नौकरी ही करनी है; वह भी ऐसी, जिसमें वेतन ज्यादा और मेहनत कम हो।' ऐसी नौकरियां कितनी हैं और भविष्य में उनका स्वरूप कैसा रहेगा? आज कई परिवारों में सफलता का एकमात्र पैमाना ऐसी नौकरी को माना जाता है, जिसमें पैसा भरपूर मिले, काम कम से कम करना पड़े। क्या हम भारत को इस तरह आर्थिक महाशक्ति बना सकेंगे? अगर यही सोच अमेरिका, चीन, जर्मनी, जापान जैसे देशों में होती तो क्या वे इतनी उन्नति कर पाते? भारत में नौकरियों, उनमें भी सरकारी नौकरियों के प्रति इतना आकर्षण इसलिए पैदा हुआ है, क्योंकि युवाओं को उद्यमिता की जानकारी नहीं दी गई। जब उन्हें कोई हुनर नहीं सिखाया गया तो वे क्या करेंगे? नौकरी ढूंढ़ना उनकी मजबूरी है।
देश में रोजगार बढ़े, घरों में खुशहाली आए, इसके लिए उद्यमिता को बढ़ावा देना होगा। इसे एक मुख्य विषय के तौर पर भले ही 11वीं कक्षा से पढ़ाया जाए, लेकिन प्रारंभिक जानकारी छठी कक्षा से देनी चाहिए। पाठ्यक्रम में 'अर्थतंत्र क्या है, बाजार कैसे चलता है, मांग क्या है, पूर्ति क्या है, कारोबारी प्रतिष्ठानों में काम कैसे होता है, अपनी रुचि को कैसे पहचानें' - जैसे सवालों को शामिल किया जाए। बच्चों को समय-समय पर बाजारों, प्रतिष्ठानों का भ्रमण कराया जाए। डिजिटल मार्केटिंग सबको सिखाई जाए। उदाहरण के लिए, अगर किसी कक्षा के बच्चों को केक खाना बहुत पसंद है तो उन्हें नजदीकी बेकरी का भ्रमण कराया जाए। उन्हें बताया जाए कि आपको स्वादिष्ट लगने वाले केक कैसे बनाए जाते हैं, कैसे सजाए जाते हैं, कैसे पैक किए जाते हैं, कैसे घरों तक पहुंचाए जाते हैं ... और कैसे सोशल मीडिया पर इनके आकर्षक वीडियो पोस्ट किए जाते हैं! कभी बेकरी के मालिक या कर्मचारियों को स्कूल में आमंत्रित किया जाए। इसी तरह, अन्य प्रतिष्ठानों का भ्रमण कराया जाए। उनके कामकाज के तरीकों के बारे में समझाया जाए। इससे बच्चों के मन में जिज्ञासा पैदा होगी और जब वे 10वीं कक्षा पास कर लेंगे, उनके मन में अपने भविष्य को लेकर स्पष्ट छवि होगी। आज स्थिति यह है कि कॉलेज की पढ़ाई के बाद भी कई युवाओं को मालूम नहीं कि वे क्या बनना चाहते हैं! इसमें उनका दोष नहीं है। जब व्यवस्था ही ऐसी चली आ रही है तो वे उद्यमी कैसे बनेंगे? हर व्यक्ति उद्यमी बन भी नहीं सकता। जिसकी रुचि हो, वही बने, लेकिन ऐसी व्यवस्था का निर्माण होना चाहिए, जो उद्यमिता को लेकर रुचि पैदा कर सके। जो युवा शिक्षक, डॉक्टर, वैज्ञानिक, बैंकर आदि बनकर देश की सेवा करना चाहते हैं, उन्हें अपनी पसंद के क्षेत्र में जरूर जाना चाहिए। देश में रोजगार के बहुत सारे विकल्प होने चाहिएं, ताकि बेरोजगारी जैसी कोई समस्या ही न रहे। यह उसी स्थिति में संभव है, जब उद्यमिता को बढ़ावा मिले।