‘सुशासन वही जहां किसी के प्रति अन्याय नहीं, सबके प्रति न्याय हो’

भेदभाव और अन्याय राजा की अयोग्यता व दुर्भाग्य के सूचक हैं

गुणों से राजा यशस्वी बनता है

गदग/दक्षिण भारत। स्थानीय राजस्थान जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ के तत्वावधान में सोमवार को जीरावला पार्श्वनाथ सभागृह में विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्य विमलसागरसूरीश्वर जी ने कहा कि राजा और प्रजा के अपने-अपने कर्तव्य होते हैं। दोनों की मर्यादाएं होती हैं। पुण्य के प्रताप से कोई राजा बनता है। प्रजा उसके शासन में सुख-शांति से जीने की अभिलाषा रखती है। भेदभाव और अन्याय राजा की अयोग्यता व दुर्भाग्य के सूचक हैं। ऐसे राजा को प्रजापालक नहीं कहा जा सकता। 

गुणों से राजा यशस्वी बनता है, लेकिन गुणहीन या अवगुणी को इतिहास में कलंक के रूप में देखा जाता है। लोकतंत्र का यह कमजोर और विषमतापूर्ण पक्ष है कि यहां एक तिहाई लोगों के समर्थन से भी कोई राजा बन जाता है, सत्ता पर काबिज हो जाता है। लोकतंत्र में गुण महत्त्वपूर्ण नहीं होते, वोट महत्त्वपूर्ण होते हैं। गिनती में गुणवान यदि पिछड़ जाता है तो वह रंक बन जाता है और गिनती में यदि अवगुणी आगे रहता है तो वह राजा बन जाता है।

जैनाचार्य विमलसागरसूरीजी ने कहा कि जाति, भाषा, प्रांत और संप्रदायों का भेदभाव इतना जहरीला होता है कि वह न्याय, नीति, मानवता और कर्तव्य का बोध कभी नहीं होने देता। इनके बलबूते पर अयोग्य भी सत्ता की योग्यता प्राप्त कर लेते हैं। 

नीति शास्त्र कहता है कि अयोग्य के पास आयी हुई सत्ता, सामर्थ्य और शक्ति सदैव लोगों के शोषण तथा उत्पीड़न का ही काम करती है। कमोबेश हम अपने देश के अनेक प्रांतों में और विश्व के अनेक देशों में यही स्थिति देख रहे हैं। यह कलयुग की करुण दर्दनाक कथा है। 

आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि लोकतंत्र न्याय की कसौटी नहीं है, फिर भी सुशासन उसे ही कहा जा सकता है जहां किसी के प्रति अन्याय नहीं होता और सबके प्रति न्याय की गारंटी होती है। भारतीय संस्कृति की प्राचीन राज्य व्यवस्था इसी प्रकार की थी। 

गणि पद्मविमलसागरजी ने बताया कि यहां सैकड़ों बालकों व युवक-युवतियों ने पॉइंट कार्ड के आधार पर पचास दिन तक निरंतर अनेक नीति-नियमों का संकल्प लेकर आराधना उपासना की है। नीति-नियमों के ये संकल्प उन्हें पाप व बुराइयों से बचाने के लिए निर्धारित किए गए थे। नई पीढ़ी की उन्नति के लिए उन्हें ऐसी शिक्षा-दीक्षा देनी अत्यंत आवश्यक है।

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