अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो की यह टिप्पणी अत्यंत निंदनीय है कि 'ब्राह्मण' भारतीय जनता की कीमत पर मुनाफाखोरी कर रहे हैं और इसे ‘रोकने’ की जरूरत है। ट्रंप की तरह ये 'सलाहकार' भी बड़बोले निकले। जब सलाहकार इतने 'तेजस्वी' होंगे तो राष्ट्रपति यकीनन उनसे चार हाथ आगे ही निकलेंगे। नोबेल पुरस्कार पाने की सनक में डोनाल्ड ट्रंप ने खुद को हंसी का पात्र बना लिया है। अब पीटर नवारो ऐसी टिप्पणियां कर रहे हैं, जो उनका 'भारतविरोधी' और 'हिंदूविरोधी' चेहरा बेनकाब कर रही हैं। उन्होंने ब्राह्मण समाज के बारे में यह टिप्पणी इसलिए की है, ताकि हिंदू समाज में फूट डाली जाए। भारत में कुछ नेता उनकी 'हां में हां' मिलाने लगे हैं। दुर्भाग्य की बात है कि ऐसे समय में पीटर नवारो जैसे शख्स को सख्ती से जवाब देने के बजाय कुछ लोग प्रचार पाने का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं। यह न समझें कि पीटर ने भावावेश में आकर ऐसी टिप्पणी की है। अमेरिकी खुफिया एजेंसियां सोशल मीडिया, जिसके ज्यादातर प्लेटफॉर्म अमेरिका के ही हैं, पर नजर रखती हैं और उसकी रिपोर्टों का विश्लेषण करती हैं। पीटर को किसी ने बताया होगा कि ऐसी बयानबाजी करेंगे तो टैरिफ मामले में जातिवाद का तड़का लग जाएगा और आप सोशल मीडिया पर छा जाएंगे। उन्होंने वही किया। पीटर यह भ्रम फैलाना चाहते हैं कि टैरिफ मामले में असल जिम्मेदार एक जाति के लोग हैं। आश्चर्य होता है कि अमेरिका में इतना महत्त्वपूर्ण पद संभाल रहे शख्स की सोच इतनी ओछी है!
पीटर की यह बयानबाजी उस विषैली सोच की अभिव्यक्ति है, जो भारत की हर समस्या के लिए ब्राह्मण समाज को जिम्मेदार ठहराती है। उनका बस चले तो उत्तर कोरिया में किम जोंग उन की सत्ता, अफ्रीका में भुखमरी और अमेरिका में तलाक के मामलों के लिए भी ब्राह्मण को जिम्मेदार ठहरा दें। ब्राह्मण ने सनातन धर्म और इस देश के लिए बहुत त्याग किए हैं, बड़े बलिदान दिए हैं। जो अमेरिका चिकित्सा के क्षेत्र में छोटी-से-छोटी खोज का श्रेय लेने से पीछे नहीं हटता, उसके नेताओं-अधिकारियों को पता होना चाहिए कि भारत का ब्राह्मण ही था, जिसने योग, आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा के क्षेत्र में सदियों तक शोध किया, लेकिन कभी श्रेय लेने की होड़ में शामिल नहीं हुआ, क्योंकि वह 'वसुधैव कुटुंबकम्' में विश्वास करता है। पीटर को पिछले एक हजार साल का इतिहास पढ़ना चाहिए। उस दौरान भारत में सत्ता में कौन था? अपनी कमियों, कोताहियों के लिए एक समाज पर झूठी तोहमत लगाना आसान है। मंशा जब ब्राह्मण पर तोहमत लगाने की हो तो यह काम और आसान हो जाता है, क्योंकि उसके खिलाफ इतना दुष्प्रचार किया गया है कि अब झूठ भी सच लगता है। यह कहना कितना हास्यास्पद है कि 'ब्राह्मण हैं जो भारतीय लोगों की कीमत पर मुनाफाखोरी कर रहे हैं', जबकि चीन द्वारा रूसी तेल की खरीद पर उनके पास कोई जवाब नहीं है। अगर पीटर भारत के कारोबारी वर्ग को ब्राह्मण कह रहे हैं तो चीनी कारोबारियों के बारे में क्या ख़याल है? ब्राह्मण ने मुट्ठीभर चावल और एक लोटा पानी पर गुजारा करके भी सनातन धर्म की सेवा की है। तमाम सुविधाओं से वंचित और अभावों से पीड़ित होकर भी वह अमेरिका की दिग्गज कंपनियों का सीईओ बन सकता है, तो यह उसकी योग्यता है। उसकी उन्नति देखकर कोई ईर्ष्या करता है तो करे। इससे पहले कि ट्रंप का 'नोबेल प्रेम' किसी बड़े उन्माद में बदल जाए, अन्य सलाहकार उन्हें यह समझाएं कि आप अमेरिकी राष्ट्रपति पद की प्रतिष्ठा को बहुत पलीता लगा चुके हैं। सत्ता में आकर किसी पुरस्कार की प्राप्ति के लिए नहीं, जनकल्याण के लिए काम करना चाहिए। जो नेता जनकल्याण करता है, उसका दर्जा किसी भी पुरस्कार से ऊंचा होता है।