क्या चीन को ऐसे पछाड़ेंगे?

कई दंपति परिवार नियोजन की धज्जियां उड़ा रहे हैं

केंद्र सरकार को कोई निर्णायक कदम उठाना चाहिए

देश पर आबादी के बढ़ते दबाव को ध्यान में रखते हुए ज्यादातर परिवार 'हम दो, हमारे दो' का महत्त्व समझ चुके हैं और इसका पालन भी कर रहे हैं। वहीं, कुछ लोगों को न तो देशहित की परवाह है और न उन संतानों के भविष्य की ही, जिन्हें वे संसाधनों के अभाव के बावजूद जन्म देते जा रहे हैं। राजस्थान में उदयपुर के झाड़ोल में एक महिला द्वारा अपने 17वें बच्चे को जन्म देने का मामला हैरान करता है! इस परिवार का मुखिया खुद को बेहद गरीब बताता है। उसके पास रहने के लिए मकान नहीं है, लेकिन बच्चों की तादाद डेढ़ दर्जन तक पहुंच चुकी है। यह कोई एक मामला नहीं है। अगर ध्यान से सर्वे किया जाए तो देश के हर राज्य में ऐसे कई दंपति मिल जाएंगे, जो परिवार नियोजन की धज्जियां उड़ा रहे हैं। देश के पास जितने संसाधन हैं, उनमें प्रति दंपति दो बच्चे काफी हैं। इसके बावजूद लोग समझते क्यों नहीं हैं? क्या हम इस तरह विकसित राष्ट्र बनाएंगे? क्या अवैज्ञानिक एवं अविवेकपूर्ण प्रजनन से देश को प्रगति के पथ पर लेकर जाएंगे? क्या हम चीन को ऐसे पछाड़ेंगे? चीन को पछाड़ना है तो शिक्षा, स्वास्थ्य, खेलकूद, टेक्नोलॉजी और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में पछाड़ें। सिर्फ आबादी के मामले में चीन से आगे निकल जाना कोई अक्लमंदी की बात नहीं होगी। देश में रोजगार को लेकर पहले ही हालात चिंताजनक हैं। युवाओं की जवानी बेरोजगारी का दंश झेलते हुए बीत रही है। प्रॉपर्टी की कीमतें इतनी बढ़ गई हैं कि मध्यम वर्गीय परिवार को कर्ज लेना पड़ रहा है। ट्रेनों, बसों, सरकारी अस्पतालों, सार्वजनिक स्थानों पर भीड़ ही भीड़ है। कोई इन्सान सुकून से बैठना चाहे तो कहां जाए?

क्या ऐसे माहौल में जो परिवार बेतहाशा आबादी बढ़ा रहे हैं, वे देश पर समस्याओं का और बोझ नहीं लाद रहे हैं? सरकार जरूरतमंद लोगों को मुफ्त राशन बांट रही है। जरूर बांटे, लेकिन इससे भुखमरी व कुपोषण जैसी समस्याओं का पुख्ता समाधान नहीं होगा। सरकार अस्पतालों में सुविधाएं बढ़ा रही है। जरूर बढ़ाए, लेकिन वे अपर्याप्त ही रहेंगी। केंद्र सरकार और राज्य सरकारें अपनी शक्ति व सामर्थ्य के अनुसार रोजगार देने की कितनी ही कोशिशें कर लें, बेरोजगारी बनी रहेगी। भारत में अपराध, बेरोजगारी, महंगाई, पर्यावरण प्रदूषण जैसी कितनी ही समस्याओं की एक बड़ी वजह 'जनसंख्या विस्फोट' है। जब तक इस ओर गंभीरता से ध्यान देकर ठोस कदम नहीं उठाए जाएंगे, सरकारें कितनी ही योजनाएं ले आएं, कितना ही बजट बढ़ा दें, हालात 'ढाक के तीन पात' वाले ही बने रहेंगे। यह कड़वी हकीकत है। नेतागण इसे खुलकर स्वीकार नहीं कर पाते। हम सबको स्वीकार करना होगा कि बेतहाशा आबादी बढ़ाने से देश की उन्नति नहीं हो सकती। इससे गंभीर समस्याएं ही पैदा होंगी। जो लोग आयकर देते हैं, वे चाहते हैं कि उनका योगदान भारत को विकसित राष्ट्र बनाए। जब उन्हें इसके बदले न तो शिक्षा व स्वास्थ्य से संबंधित गुणवत्तापूर्ण सुविधाएं मिलती हैं, न साफ पर्यावरण मिलता है तो मन में आक्रोश पैदा होता है। जब वे ऐसे वर्ग को देखते हैं, जो आयकर नहीं देता, लेकिन अविवेकपूर्ण ढंग से आबादी बढ़ाता रहता है तो देश के भविष्य को लेकर चिंता होती है। दुर्भाग्य की बात है कि कुछ राजनीतिक दल ऐसे दंपतियों को जागरूक करने के बजाय उनमें अपना वोटबैंक ढूंढ़ते हैं। अगर आबादी इसी तरह बढ़ती रही तो सबको गुणवत्तापूर्ण सुविधाएं मिलना एक सपना ही रह जाएगा। अब केंद्र सरकार को कोई निर्णायक कदम उठाना चाहिए।

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