लालच का दांव, अंतहीन कुतर्क

क्या हर तरह के सुधार की जिम्मेदारी सरकार की ही है?

जनता की कोई जिम्मेदारी नहीं है?

जब से केंद्र सरकार ने ऑनलाइन मनी गेमिंग पर सख्त कानून बनाया है, सोशल मीडिया पर कई लोग इसके खिलाफ एकजुट होकर कुतर्क दे रहे हैं। वे किसके इशारे पर ऐसा कर रहे हैं, इसका खुलासा होना चाहिए। जिन ऑनलाइन गेम्स के चक्कर में पड़कर लोगों की ज़िंदगीभर की बचत खत्म हो गई, उनका समर्थन कोई कैसे कर सकता है? वे कहते हैं- 'क्या देश में यही एक समस्या है ... इससे बड़ी समस्या तो बेरोजगारी है, सरकार उस पर ध्यान क्यों नहीं देती ... ऑनलाइन मनी गेमिंग से ज्यादा नुकसान तो शराब से हो रहा है, सरकार उसे बंद क्यों नहीं करती ... इससे ज्यादा बुरी लत तो गुटखा-तंबाकू की है, सरकार पहले उसे बंद करने की हिम्मत क्यों नहीं दिखाती ... ऑनलाइन मनी गेमिंग पर तो रोक लगा दी, लेकिन जो लोग छिपकर खेलेंगे, उन्हें कैसे रोकेंगे?' ये अंतहीन कुतर्क हैं, जिनका सार यही है कि सरकार पहले पूरी दुनिया को सुधारे, उसके बाद ऐसे ऐप्स की ओर ध्यान दे! क्या हर तरह के सुधार की जिम्मेदारी सरकार की ही है? जनता की कोई जिम्मेदारी नहीं है? जिन लोगों ने अब तक इन ऐप्स पर रुपए गंवाए, वे उधर क्या करने गए थे? मोटी कमाई का लालच ही वह तत्त्व है, जिसके वशीभूत होकर उन्होंने ऐप डाउनलोड किया और गेम खेला था। कुछ लोग यह कुतर्क देकर इन ऐप्स को डाउनलोड करने संबंधी अपने फैसले का बचाव कर रहे हैं कि 'हम तो बेरोजगार हैं, जिसके पास कोई काम नहीं होगा, वह ऑनलाइन गेम ही खेलेगा'! उन्हें पता होना चाहिए कि इन ऐप्स के जाल में फंसकर कई व्यापारी भी बर्बाद हो चुके हैं। ऐसे लोग सोशल मीडिया पर आकर बता चुके हैं कि उनकी सालाना कमाई लाखों में थी। एक दिन दुर्भाग्य ने आ घेरा और वह ऐप डाउनलोड कर लिया। अब कारोबार चौपट है, उधार मांगकर गुजारा चल रहा है।

लोग (हजारों रुपए हारने के बावजूद) बेरोजगारी को वजह बताकर ऐसे ऐप्स अपने मोबाइल फोन में डाउनलोड करने को सही ठहराने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने वही राशि खर्च कर कोई हुनर क्यों नहीं सीखा? एक बेरोजगार नौजवान 30,000 रुपए हार चुका है। अगर वह इस राशि से कोई काम-धंधा शुरू कर देता तो बेशक पहले कमाई कुछ कम होती, लेकिन आगे उन्नति करता। यह राशि एक झटके में नहीं डूबती। इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि देश में बेरोजगारी है, लेकिन इसका समाधान यह नहीं है कि नौजवान ऑनलाइन मनी गेमिंग को कमाई का जरिया बना लें। सोचिए, जो कंपनियां इन ऐप्स का संचालन करती हैं, उन्हें कमाई कहां से होती है? क्या वे बेरोजगारों का 'भला' करने के लिए आई हैं? लोग जितनी राशि हारेंगे, इन कंपनियों की कमाई उतनी ही बढ़ेगी। लोगों की जेबें खाली होंगी, तो ही इन कंपनियों के खातों में 'धनवर्षा' होगी। इतनी सीधी-सी बात लोग समझते क्यों नहीं? नौजवानों का एक वर्ग ऐसा है, जो 'सेलिब्रिटी' के शब्दों पर आंखें मूंदकर विश्वास करता है। उसे लगता है कि ये जिस चीज का प्रचार करेंगे, वह सौ फीसद सही होगी! ऑनलाइन मनी गेमिंग में हजारों-लाखों रुपए हारने के बाद कई नौजवान यह कहते मिल जाएंगे- 'हमें तो फलां सेलिब्रिटी ने कहा था, उसने एक वीडियो में इस ऐप का प्रचार किया था'। कितने आश्चर्य की बात है कि इस देश के कई नौजवान अपने विवेक-बुद्धि पर विश्वास करने के बजाय 'सेलिब्रिटी' की बातों पर ज्यादा विश्वास करते हैं! अगर किसी ऑनलाइन गेम में सबकुछ हार गए तो क्या कोई 'सेलिब्रिटी' उस नुकसान की भरपाई कर देगा? ये 'सेलिब्रिटी' उस ऐप का विज्ञापन भी मुफ्त में नहीं करते। अगर विश्वास करना ही है तो भगवान श्रीकृष्ण पर करें, जिन्होंने हजारों साल पहले 'महाभारत' में साफ बता दिया था कि 'लालच का दांव' आखिर में बर्बाद ही करता है। सरकारी रोकथाम की एक सीमा होती है। व्यक्ति मजबूत इच्छाशक्ति से ही खुद को इन गतिविधियों से रोक सकता है।

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