बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के माधवनगर स्थित वासुपूज्य स्वामी जैन मंदिर में पर्युषण पर्व की आराधना कार्यक्रम में प्रवचन देते हुए आचार्य अरिहंतसागरसूरीश्वरजी ने अपने प्रातःकालीन प्रवचन में पर्युषण पर्व के पाँचवें दिन चौदह स्वप्नों का शास्त्रीय विवेचन किया।
उन्होंने बताया कि पुष्पमाला, चंद्र, सूर्य, ध्वज, पूर्णकलश, पद्मसरोवर, रत्नाकर, देवविमान, रत्नराशि और निर्धूम अग्नि जैसे स्वप्न भविष्य के महान व्यक्तित्व का संकेत करते हैं। इन स्वप्नों का केवल दार्शनिक महत्व नहीं, बल्कि इनके माध्यम से प्राचीन परंपरा, कुलाचार और जीवन-दर्शन की अनेक गूढ़ शिक्षाएँ भी प्राप्त होती हैं।
आचार्यश्री ने स्पष्ट किया कि प्रभु महावीर ने गर्भावस्था में ही माता-पिता के प्रति विनय और आज्ञापालन का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। जब माता त्रिशला ने गर्भस्थ शिशु की गतिविधियों के न होने से चिंता व्यक्त की, तब प्रभु ने संकल्प लिया कि जब तक मेरे माता-पिता जीवित हैं, तब तक मैं संयम नहीं ग्रहण करूंगा। यह केवल मातृ-पितृ भक्ति का प्रतीक नहीं था, बल्कि समाज को यह शिक्षा देने का सशक्त माध्यम था कि संतान का प्रथम धर्म अपने माता-पिता के प्रति सम्मान और कर्त्तव्य-पालन है।
दोपहर के प्रवचन में आचार्यश्री ने भगवान महावीर के जन्म कल्याणक का विस्तृत वर्णन किया। आचार्यश्री ने कहा कि सामान्य जन्म तो मोह कर्म के उदय का परिणाम है, किंतु तीर्थंकर का जन्म आत्माओं के कल्याण का कारण बनता है। इसीलिए प्रभु के च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाण, इन पाँच महोत्सवों को कल्याणक कहा जाता है।
आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं से आह्वान किया कि महावीर प्रभु के जन्म की महिमा केवल सुनने भर से नहीं, बल्कि उससे प्रेरणा लेकर हमें भी जन्म-मरण के बंधन को तोड़ने का संकल्प करना चाहिए, तभी पर्युषण पर्व का सच्चा लाभ प्राप्त होगा।