चारों वर्णों के लोगों को अपनाया था प्रभु महावीर ने: आचार्य विमलसागरसूरी

श्रद्धा-भक्ति से मनाया महावीर स्वामी का जन्मोत्सव

हजारों श्रद्धालु इस उत्सव में सम्मिलित हुए

गदग/दक्षिण भारत। पर्युषण महापर्व के पांचवें दिन स्थानीय राजस्थान जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ के तत्वावधान धर्मग्रंथ कल्पसूत्र की महावीर कथा के आधार पर रविवार को यहां पार्श्व बुद्धि वीर वाटिका में चौबीसवें तीर्थंकर महावीरस्वामी का जन्मोत्सव अत्यंत हर्ष-उल्लास से मनाया गया। स्थानीय व आसपास के क्षेत्रों के हजारों श्रद्धालु सज-धजकर इस उत्सव में सम्मिलित हुए। 

रजत के महावीरस्वामी के झूले की स्थापना की गई। सभा में उपस्थित जनों को संबोधित करते हुए जैनाचार्य विमलसागरसूरीजी ने कहा कि भगवान महावीर दुनिया को दुःखों से मुक्ति दिलाने आए थे। मगध की भूमि के इस राजपुत्र ने सभी जाति-वर्गों के भेदभावों से ऊपर उठकर समग्र मानवता के कल्याण का उपदेश दिया। अपनी परंपरा में उन्होंने मात्र वैश्य, क्षत्रिय और ब्राह्मण ही नहीं, सबको सम्मिलित कर मानवीय इतिहास में क्रांतिकारी कदम उठाया था।

दलित परिवार के मुनि मेतारज और मुनि हरिकेशी को अपने संघ में सम्मिलित कर वर्धमान महावीर ने समानता का अद्भुत आदर्श प्रस्तुत किया था। बारह वर्षों का उनका संपूर्ण साधना काल तपस्या, धीरता और सहनशीलता में बीता। अहिंसा और क्षमा उनकी साधना के प्राणबिंदु थे। अपकारी के प्रति भी उन्होंने उपकार की वर्षा की। प्रतिकार, तिरस्कार और वैमनस्य उनके जीवन से सर्वथा परे थे। 

आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि महावीर ने अहिंसा, क्षमा, अपरिग्रह और अनेकांतवाद के जो सिद्धांत दिये हैं, वे विश्व शांति की आधारशिला बन सकते हैं। विनाश के कगार पर खड़ी दुनिया अपने अस्तित्व की शायद यह आखरी लड़ाई लड़ रही है। चारों ओर हिंसा, युद्ध व अनैतिकता का वातावरण जोर पकड़ता जा रहा है। ऐसी स्थिति में महावीरस्वामी के उपदेशों पर दुराग्रह मुक्त चिंतन होना चाहिए। महावीरस्वामी को मात्र जैनधर्म के तीर्थंकर के रूप में नहीं, देश, काल और संप्रदायों की सीमा से ऊपर उठकर समझा जाना चाहिए। 

गणि पद्मविमलसागरजी ने बताया कि रविवार को देश-विदेश में करीब पैंतालीस हजार से अधिक स्थानों पर महावीरस्वामी का जन्मोत्सव मनाया गया।

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