.. श्रीकांत पाराशर ..
छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले का नाम सुनते ही हमारे मानसपटल पर नक्सल प्रभावित क्षेत्र की छवि उभर आती है लेकिन अब वहां तेजी से बदलाव आ रहा है। हाल ही में "चित्रकोट कन्नड़-छत्तीसगढ़ी संगम" कार्यक्रम में बस्तर जाने का अवसर मिला तो वहां के काकतीय राजवंश के 23वें वंशज, मौजूदा युवराज कमलचंद्र भंजदेव से मिलने का मौका मिला। वे राजनीतिक रूप से भाजपा से जुड़े हैं और क्षेत्र के विधायक भी हैं।
ज्ञातव्य है कि बस्तर रियासत की स्थापना 14 वीं शताब्दी में हुई थी। रियासत के 20 वें वंशज श्री प्रवीरचंद्र भंजदेव 1936 में राजा बने जो जनता के बीच बहुत लोकप्रिय रहे। बस्तर के आदिवासी उन्हें भगवान मानते थे और आज भी उनको पूजते हैं। उन्होंने 1948 तक राज किया। प्रवीरचंद्र भंजदेव की 1966 में उनके ही महल में पुलिस की गोली से मृत्यु हो गई थी।
वर्तमान वंशज श्री कमलचंद्र भंजदेव भी अपने विनम्र व्यवहार के कारण स्थानीय आदिवासियों में बहुत लोकप्रिय हैं। उनकी हाल ही में गत फरवरी माह में ही नागौद रियासत की राजकुमारी से शादी हुई है। वे लंदन से पोलिटिकल साइंस में ग्रेजुएट हैं और वर्ष 2010 में स्वदेश लौटकर उन्होंने अपने पूर्वजों की रियासत संभाली। उन्होंने प्रवीर सेना भी बनाई है जिसमें लगभग 28 लाख आदिवासी हैं।
गौरतलब है कि बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी हैं। उनका मुख्य मंदिर दंतेवाड़ा में है तथा एक मंदिर यहां बस्तर महल परिसर में स्थापित है। हमने भी माता दंतेश्वरी के दर्शन कर आशीर्वाद ग्रहण किया। राजमहल में कमलचंद्र भंजदेव जी का आत्मीय आतिथ्य सत्कार भी मिला। उन्होंने बताया कि बस्तर का दशहरा मैसूर के विश्वप्रसिद्ध दशहरे से भी अधिक पुराना है लेकिन पिछड़े क्षेत्र के कारण उतना प्रचार प्रसार नहीं हुआ और विश्व पटल पर नहीं पहुंच सका।
एक और रोचक बात, कोहिनूर हीरा सबसे पहले बस्तर रियासत के पास था जो 1303 में अलाउद्दीन खिलजी के साथ युद्ध के दौरान चोरी हो गया था। बस्तर रियासत बहुत बड़ी थी, एक तरफ तेलंगाना तक तो दूसरी तरफ महाराष्ट्र की सीमा तक फैली थी।
बस्तर का दशहरा आज भी भव्यता के साथ मनाया जाता है और कम से कम 90 दिन तक चलता है। महल परिसर को जनता के लिए खोल दिया जाता है। समस्त जनता के रहने-खाने का बंदोबस्त राजघराने की तरफ से होता है।