बालकों के संस्कारों में परिवार और परिवेश की अहम भूमिका: आचार्य विमलसागरसूरी

निरंतर तीन घंटे तक धाराप्रवाह बोलते हुए जैनाचार्य विमलसागरसूरीजी ने कहा ...

परिवार का सात्विक सुसंस्कारी वातावरण होना चाहिए

गदग/दक्षिण भारत। स्थानीय राजस्थान जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ के तत्वावधान में रविवार को पांचवीं जागरण सेमिनार में निरंतर तीन घंटे तक धाराप्रवाह बोलते हुए जैनाचार्य विमलसागरसूरीजी ने कहा कि एकल और संयुक्त परिवार का भी बालकों के मन पर गहरा असर होता है। माता-पिता और अभिभावकों की मनोवृत्तियां, भाषा, संस्कार और विचार बालकों पर अमिट छाप छोड़ते हैं। वह छाप मरते दम तक भी नहीं मिटती। मनुष्य के सभी संस्कार गत जन्मों के ही नहीं होते।

झूठ, जिद्द, गुस्सा, मनमानी, गाली-गलौज, चोरी, अनुशासनहीनता, ईर्ष्या, भेदभाव और व्यसन आदि अनेक कुवृत्तियां बालकों के जीवन में दूसरों को देख-देखकर पनपती हैं। परिवार का सात्विक सुसंस्कारी वातावरण और उसकी गौरवशाली परंपराएं बालकों के जीवन-निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। 

हर घर की अपनी कुछ गालियां होती हैं और वे बालकों की जबान पर आसानी से उपलब्ध होती हैं। घर में एक-दूसरे के प्रति होते पक्षपात, भेदभाव का भी बालकों पर गहरा असर होता है। अन्याय बालकों को अपराधी बना सकता है। 

पार्श्व बुद्धि वीर वाटिका के विशाल पंडाल में उपस्थित सोलह से पचास वर्ष तक के एक हजार अधिक युवक-युवतियों को मार्गदर्शन देते हुए आचार्य विमलसागरसूरीजी ने माता-पिता, संतान, परिवार, संस्कार, संपत्ति, सुख-सुविधाएं आदि अनेक जीवनोपयोगी विषयों की तलस्पर्शी चर्चा की। 

उन्होंने कहा कि गरीबी या अभावग्रस्त जीवन जितना असरकारक नहीं होता, उतना घर के आसपास और समाज का वातावरण बालकों पर प्रभावी होता है। अगर वे गंदे, गलत या बुरे वातावरण के आसपास पल रहे हैं तो उन बालकों की कोमल और अपरिपक्व मानसिकता पर इसके गहरे नकारात्मक प्रभाव स्पष्ट दिखाई देंगे, इसलिए अपना घर सही जगह पर होना चाहिए और पड़ोसी अच्छे होने चाहिएं। वक्त पर अच्छे पड़ोसी ही बहुत काम आते हैं।

आचार्य विमलसागरसूरीजी ने समझाया कि संवेदना और प्रेम से बालकों को अपने पास लेना चाहिए, उनका स्पर्श करना चाहिए। उन्हें अलग-अलग तरीकों से समझाना और उनमें विश्वास पैदा करना चाहिए। डराकर बालकों को कमजोर नहीं बनाना चाहिए। बालकों को समय देना, उनके साथ खेलना और आवश्यकतानुसार उन्हें वस्तुएं दिलाना भी उतना ही जरूरी है। 

उनको घर, समाज, संसार और भविष्य की परिस्थितियों से वाकिफ कराना और पूरे परिवार के साथ हिलमिलकर भोजन करना भी बहुत महत्वपूर्ण है। बालकों को अकेले न छोड़ना, बार-बार उन्हें न डांटना तथा उनके मन की बातें जानना भी जरूरी है। संस्कारी परिवारों के आसपास घुलमिलकर रहना तथा बालकों के अच्छे मित्रों का होना भी अपने जीवन का महत्त्वपूर्ण पक्ष है।

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