सुपात्र दान की भावना से होते हैं अंतराय कर्म के क्षय: साध्वी संयमलता

विजयनगर महिलाओं ने आयोजित की कार्यशाला

'सेवा करने से भी अंतराय कर्म टूटता है'

बेंगलूरु/दक्षिण भारत। तेरापंथ महिला मंडल विजयनगर के तत्वावधान में 'अंतराय कर्म को कैसे तोड़ें?’ विषय पर कार्यशाला का आयोजन मंगलवार को साध्वी संयमलता जी के सान्निध्य में अर्हम भवन में किया गया। साध्वी संयमलता जी ने कहा कि अंतराय कर्म की पांच प्रकृतियां हैं, जिनसे ही जीव बंधन करता और तोड़ता है। 

अंतराय कर्म की प्रकृति दानांतराय पर बताते हुए साध्वी ने कहा कि जिसके भीतर सुपात्र दान की भावना होती है तथा जिसने दान के सही मूल्य को समझा है, उसने ही अपने अंतराय कर्म को तोड़ा है। 

आगमों में ऐसे अनेक उदाहरण प्राप्त होते हैं जिससे स्पष्ट होता है कि सुपात्र दान से कर्म कटते हैं एवं शुभ आयुष्य कर्म का बंध होता है। इसके साथ ही जो व्यक्ति दान देकर पश्चाताप करता है वह भव भ्रणकारी कर्मों का बंधन करता है तथा उसे अपनी इच्छा को पूर्ण करने के लिए भटकना पड़ता है।

उन्होंने कहा कि सेवा करने से भी अंतराय कर्म टूटता है। सेवा करने वाले के वीर्यातंराय कर्म का क्षय होता है जिससे अनंत शक्ति, बल और वीर्य प्राप्त होता है। अंतराय कर्म को तोड़ने की प्रेरणा देते हुए साध्वीश्री ने कहा कि हमें उस दिशा में पुरुषार्थ करते हुए आगे बढ़ना चाहिए। 

कार्यक्रम में महिला मंडल की अध्यक्ष महिमा पटावरी, मंत्री सरिता छाजेड़, पूर्व अध्यक्ष प्रेम भंसाली, उपाध्यक्ष सुनीता पटावरी, सहमंत्री हंसा दुगड़, अनीता जीरावाला, कर्नाटक प्रभारी मधु कटारिया, अभातेमं से शशि नाहर सहित अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे। 

अनेक सदस्यों ने तप के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। महिमा बटावरी ने साध्वीश्री के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की।

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