हृदय की पवित्रता ही भगवान की अखण्ड पूजा है: संत वरुणमुनि

'हमें भी परमात्मा को प्राप्त करने की प्यास जगानी चाहिए'

'भक्ति भारतीय संस्कृति की एक आदर्श विशेषता है'

बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के गांधीनगर गुजराती जैन संघ में चातुर्मासार्थ विराजित श्रमण संघीय उपप्रवर्तक पंकजमुनिजी की निश्रा में डॉ. वरुणमुनिजी ने कहा कि प्रभु की भक्ति श्रद्धा व भक्ति भाव से करें, क्योंकि भक्ति की शक्ति अपार है। वीतराग प्रभु के प्रति असीम श्रद्धा भक्ति रखते हुए भक्त जो भी पूजा भक्ति, गुण कीर्तन, नाम स्मरण पाठ करता है, वह मनुष्य जन्म का पहला फल है। हमें भी परमात्मा को प्राप्त करने की प्यास जगानी चाहिए। 

उन्होंने कहा कि जिस दिन आप में परमात्मा को प्राप्त करने की वास्तविक प्यास जग जाएगी उस दिन प्रभु हमसे दूर नहीं होंगे। उस समय साधक अपना सब कुछ देकर भी उस अमृत तुल्य परमात्मा को प्राप्त करने में तन-मन से लग जाएगा। जरूरत है बस प्रभु को सच्चे अर्थों में प्राप्त करने की चाह और प्यास लगने की। 

उन्होंने कहा कि भक्ति भारतीय संस्कृति की एक आदर्श विशेषता है। परमात्मा की भक्ति करने से हमारा मन प्रसन्न हो जाता है। भक्ति का मार्ग सभी धर्म दर्शनों में सर्व श्रेष्ठ बतलाया गया है। निष्कपट भाव से प्रभु के प्रति समर्पित होना ही अखण्ड पूजा भक्ति है। भगवान के नाम में भी बड़ी शक्ति है। दुनिया के नाम झूठे हो सकते हैं लेकिन प्रभु का नाम सच्चा है। 

उन्होंने कहा कि भगवान की भक्ति, उपासना, पूजा, अर्चना आदि करने से सुख शांति समृद्धि की प्राप्ति होती है। इतिहास में मीरा, तुलसी, रैदास, चंदन बाला, सेठ सुदर्शन, भक्त प्रह्लाद की भक्ति की महिमा आज भी जग में प्रसिद्ध है और सब धर्मों में आदर भाव से स्मरण याद की जाती है। उन्होंने आगे कहा कि हृदय की पवित्रता ही भगवान की अखण्ड पूजा है। 

प्रारंभ में रूपेशमुनि जी ने भजन प्रस्तुत किए। उपप्रवर्तकश्री पंकज मुनि जी ने सबको मंगल पाठ प्रदान किया। संचालन राजेश मेहता ने किया।

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