संपूर्ण जगत में धर्म के समान कोई पवित्र वस्तु नहीं: आचार्य प्रभाकरसूरी

'सभी के साथ स्वार्थ का संबंध है'

'सारे शुभ और अशुभ कर्मों के फल जीव अकेला ही भोगता है'

बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के महालक्ष्मी लेआउट स्थित चिंतामणि पार्श्वनाथ जैन मंदिर में चातुर्मासार्थ विराजित आचार्य प्रभाकरसूरीश्वरजी ने अपने प्रवचन में कहा कि संसार में कोई भी चीज सदा साथ रहने वाली नहीं है। जीवन में हम सगे संबंधी, धन, यश व कीर्ति को अपना मानते हैं। यह हम गलत सोचते व मानते हैं। यह सब तब तक आप के साथ हैं जब तक कि आप के साथ पुण्य कर्म की पूंजी है। सभी के साथ स्वार्थ का संबंध है। शरीर भी उसी क्रम में एक दिन साथ छोड़ देता है इसलिए उसका साथ का मोह छोड़ देना चाहिए। केवल अपने कर्म का पालन करना चाहिए।

आचार्यश्री ने कहा कि सारे शुभ और अशुभ कर्मों के फल जितने भी हैं यह जीव अकेला ही भोगता है, कोई साथ नहीं देने वाला होता है। इसलिए हमें अपने परमात्मा तथा धर्म पर अपने भाव को प्रकट करते हुए सत्य कर्म मार्ग पर चलना चाहिए। जिस प्रकार जीवन पर्यन्त नीच व्यक्ति पर कितना ही उपकार किया जाए तो भी उसमें सज्जनता नहीं आती है, उसी प्रकार मनुष्य की देह भी अपनी स्वाभाविक दुर्गन्ध को नहीं छोड़ती है। 

यह देह विश्वास की भी पात्र नहीं है, हमें केवल और केवल अपनी आत्मा पर विश्वास करना चाहिए। आत्मा का कल्याण हुआ तो हमारा कल्याण निश्चित होगा। आत्मा के दोष स्वरूप मैल को दूर करने के लिए धर्म साबुन के समान है। सम्पूर्ण जगत में इस धर्म के समान कोई पवित्र वस्तु नहीं है। आत्मा पर भी कर्म का रोग लगा हुआ है। 

आचार्यश्री ने कहा कि हमारी जिंदगी बढ़ती जा रही है और उम्र घटती जा रही है। हमारे जीवन में धर्म की भावना बढ़नी चाहिए। व्यक्ति द्वारा किए गए अच्छे और बुरे कर्म ही साथ आएंगे, वे ही तय करेंगे कि आपको स्वर्ग मिलेगा या नरक। परमात्मा के वचन औषधि के रूप में काम करते हैं। इसके माध्यम से तन व मन दोनों स्वस्थ रहते हैं। तन के डॉक्टर पैसे खर्च करने पर मिल जाते हैं पर मन के डॉक्टर पैसे से भी नहीं मिलते बल्कि भगवान के प्रति आस्था व श्रद्धा के माध्यम से मन को शांत किया जा सकता है।

जयंतीलाल श्रीश्रीमाल ने बताया कि सभा में मुनिश्री महापद्मविजयजी, पद्मविजयजी, साध्वी तत्वत्रयाश्रीजी, गोयमरत्नाश्रीजी व परमप्रज्ञाश्रीजी उपस्थित थे।

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