बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के गांधीनगर गुजराती जैन संघ में चातुर्मासार्थ विराजित श्रमण संघीय उपप्रवर्तक पंकजमुनिजी की निश्रा में डॉ. वरुणमुनिजी ने कहा कि श्रुत ज्ञान सत्संग से जीवन महक उठता है। एक वह चीज जिसके सुनने मात्र से मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है वह है आगमवाणी।
आगमवाणी से श्रुत ज्ञान की प्राप्ति और ज्ञान से विज्ञान और क्रमशः आगे बढ़ते हुए संयम के साथ सिद्धि की प्राप्ति हो सकती है। श्रुत ज्ञान की महिमा भी अपरंपार है। तीर्थंकर भगवान की जिनवाणी साधक को संसार सागर से पार कराने वाली है। आवश्यकता बस यही है कि व्यक्ति गुरु का सत्संग समागम प्राप्त कर गुरु वचनों को अपने अन्तर हृदय में धारण करे।
ज्ञान का फल विरति है। विद्यावान गुणी व्यक्ति अपने जीवन में कोई उलझन या मुसीबत आए तो भी उन समस्याओं से विचलित नहीं होते हुए शान्त चित्त होकर चिन्तन करता है और उसमें से निकलने का रास्ता निकाल लेता है और समभाव से हर परिस्थिति का धैर्य पूर्वक सामना करता है।
संतश्री ने कहा कि परेशानी से लड़ो मत बल्कि उसका वीरता से सम्मान करो तभी हम उस समस्या से निजात पा सकते हैं और जीवन के हर परिस्थिति में किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। ज्ञान को तीसरा नेत्र कहा गया है। अविद्यावान धर्म की बात सुनता ही नहीं, कभी सुनले तो उस पर अमल नहीं करता है।
उन्होंने आगे कहा कि सच्चा ज्ञान वह है जो मानव को अन्धकार से प्रकाश की ओर व बन्धन से मुक्ति की ओर लेकर जाता है। श्रुत ज्ञान आत्मसंयम की कला सिखाता है। सभी विद्याओं में अध्यात्म विद्याज्ञान को उत्तम व श्रेष्ठ बतलाया गया है जो जीवों को सब बंधनों से मुक्त कर देती है। अतः साधक सच्चा ज्ञान प्राप्त कर उस पर श्रद्धा सहित आचरण करें तो उनके जीवन का भी
कल्याण हो सकता है।
प्रारंभ में संतश्री रूपेश मुनि जी ने भजन के माध्यम से अपने विचार व्यक्त किए। उपप्रवर्तक श्री पंकज मुनि जी ने मंगल पाठ प्रदान किया। कार्यक्रम का संचालन राजेश मेहता ने किया।