पुण्य की बदौलत सत्ता, संपत्ति और सफलताएं मिलती हैं: आचार्यश्री विमलसागरसूरी

'पात्रता के अभाव में पुण्य से मिली हुई शक्तियां भी परपीड़ा या शोषण में लग जाती हैं'

'हर एक व्यक्ति को अपनी पात्रता बनानी चाहिए'

गदग/दक्षिण भारत। स्थानीय राजस्थान जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ के तत्वावधान में गुरुवार को जीरावला पार्श्वनाथ सभागृह में विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए जैनाचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि पुण्य की बदौलत सत्ता, संपत्ति और सफलताएं मिलती हैं, लेकिन पात्रता के बिना वे टिकती नहीं हैं। 

पात्रता के अभाव में पुण्य से मिली हुई शक्तियां भी परपीड़ा या शोषण में लग जाती हैं। वो पुण्य किसी को सुख देने के बजाय दुःख देने में खर्च हो जाता है। योग्यता के बगैर प्राप्त पुण्य अमृत नहीं, जहर का काम करता है। तानाशाह हिटलर, मुसोलिनी, स्तालिन, लीबिया का गद्दाफी आदि इस बात के अनेक उदाहरण हैं।

आचार्यश्री ने कहा कि गलत कार्य कर अगर हम बच भी जाते हैं तो पुण्य के इस खेल पर बहुत इतराने जैसा नहीं है, क्योंकि पुण्य की समृद्धि देर-सबेर खाली होनी है। किए हुए गलत कार्य की सजा आने वाले किसी जन्म में मिलेगी, इस गफलत में रहने जैसा नहीं है, पापकार्यों का भुगतान इसी जन्म में ब्याज समेत करना पड़ सकता है। 

पुण्य कभी भी धोखा दे सकता है। पुण्य का खेल कभी भी पूरा हो सकता है। पुण्य पर इतराने वाले स्वयं को ठगा महसूस कर सकते हैं। जीवन पुण्य के बलबूते पर नहीं, पात्रता के आधार पर जीया जाना चाहिए। हर एक व्यक्ति को अपनी पात्रता बनानी चाहिए। योग्यता से अधिक कभी कुछ नहीं मिलता। 

आचार्यश्री ने आगे कहा कि पात्रता के लिए अथक पुरुषार्थ किया जाना चाहिए। वही हितावह और कल्याणकारी है। पात्रता कभी रोने के दिन नहीं लाती। कर्मवाद की व्यवस्था में देर हो सकती है, अंधेर नहीं होती। संघ के निर्मल पारेख ने बताया कि कषाय जय तप की आराधना में पचास से अधिक कॉलेज के विद्यार्थी थे।

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