पंजाब विधानसभा की प्रवर समिति ने 'बेअदबी विरोधी विधेयक' के संबंध में जनता से जो सुझाव मांगे हैं, उन पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। इस विधेयक में धार्मिक ग्रंथों के खिलाफ अपवित्र कृत्य करने वालों के लिए 10 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है। दोषी व्यक्ति पर 5 लाख रुपए से लेकर 10 लाख रुपए तक जुर्माना लगाया जा सकता है। 'बेअदबी विरोधी विधेयक' गुरुग्रंथ साहिब, भगवद्गीता, बाइबिल और कुरान समेत सभी पवित्र धर्मग्रंथों का सम्मान सुनिश्चित करने की बात कहता है, जो सराहनीय है। एक सभ्य समाज का निर्माण करने के लिए जरूरी है कि वहां सबकी आस्था का सम्मान किया जाए, सभी धर्मग्रंथों के प्रति आदर को बढ़ावा दिया जाए। ऐसी कई घटनाएं हुई हैं, जब किसी ने आवेश में आकर या जानबूझकर अभद्र टिप्पणी की, जिससे लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची और मामले में खतरनाक मोड़ आ गया। देश में कहीं भी ऐसी घटनाएं न हों, इसके लिए सरकारों को कानूनी उपाय करने चाहिएं। साथ ही, इन कानूनों के दूसरे पहलू को जरूर देखना चाहिए। पाकिस्तान में इससे मिलता-जुलता कानून पहले से मौजूद है, जो आज अत्यंत घातक रूप ले चुका है। उसने लोगों में इतनी कट्टरता भर दी है कि अब कोई नेता, जज, यहां तक कि सेना प्रमुख भी उस पर टिप्पणी करने से परहेज करते हैं। पाकिस्तान के तत्कालीन तानाशाह जनरल जिया-उल-हक ने वर्ष 1980 से 1986 के बीच ईशनिंदा कानून को 'संशोधित' कर उसे इतना ज्यादा सख्त बना दिया था कि आज वह लोगों के लिए गले का फंदा बन चुका है। इस कानून का सबसे ज्यादा 'प्रकोप' भी पाकिस्तानी पंजाब में है।
तीन दिसंबर, 2021 को पाकिस्तानी पंजाब के सियालकोट में एक श्रीलंकाई मैनेजर प्रियंथा कुमारा को ईशनिंदा के आरोप में उग्र भीड़ ने बुरी तरह पीटा और बाद में जिंदा जला दिया था। वहां ईशनिंदा के एक और बहुचर्चित मामले का संबंध भी पंजाब से है। आसिया बीबी नामक महिला को पाकिस्तानी उच्चतम न्यायालय ने जब निर्दोष घोषित किया तो पूरे मुल्क में हिंसा छिड़ गई थी। आसिया को अपनी जान बचाकर विदेश में शरण लेनी पड़ी। इससे पहले, पाकिस्तानी पंजाब के राज्यपाल सलमान तासीर ने जब ईशनिंदा कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताई तो उनके ही अंगरक्षक ने उनकी हत्या कर दी थी। इस कानून के सख्त प्रावधानों ने पूरे पाकिस्तान में ऐसा माहौल बना दिया है कि अफवाह सुनकर भीड़ अचानक भड़क उठती है और देखते ही देखते उस व्यक्ति को मौत के घाट उतार देती है। ऐसे भी मामले आए हैं, जब बॉस से नाराज कर्मचारी ने उस पर ईशनिंदा का झूठा आरोप लगाकर हत्या कर दी। किसी को पड़ोसी की जमीन पर कब्जा करना था तो उसने ईशनिंदा की झूठी एफआईआर लिखवा दी। किसी के प्रेम संबंधों में कड़वाहट आ गई तो ईशनिंदा का झूठा आरोप लगाकर जेल भिजवा दिया। यही नहीं, वहां साइबर अपराधियों के ऐसे गिरोह बन चुके हैं, जो लोगों से ऑनलाइन दोस्ती करते हैं, उसके बाद उनसे बातचीत करते हुए ऐसी टिप्पणी करने के लिए उकसाते हैं, जो ईशनिंदा कानून के दायरे में आए। वह व्यक्ति जैसे ही टिप्पणी करता है, साइबर अपराधी उसका स्क्रीनशॉट लेकर धमकी देते हैं कि 'हमारे पास आपके खिलाफ सबूत है। अगर अपनी जान सलामत चाहते हैं तो हमें रुपए भेजें।' पाकिस्तान में किसी ने सोचा नहीं होगा कि ईशनिंदा कानून का दुरुपयोग इतना खतरनाक हो सकता है! पंजाब सरकार जब 'बेअदबी विरोधी विधेयक' पर चर्चा करे तो इस पहलू को जरूर ध्यान में रखे। इस राज्य ने अशांति का दौर देखा है। कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों में बैठे खालिस्तान समर्थक तत्त्व भड़काऊ बयानबाजी करते रहते हैं। उन्हें आईएसआई से समर्थन मिलता है। पंजाब सरकार कानून बनाने से पहले यह सुनिश्चित करे कि देशविरोधी एवं शांतिविरोधी ताकतें उसका दुरुपयोग न कर पाएं।