असामान्य पुण्य और सत्व के धारक होते हैं महापुरुष: आचार्यश्री विमलसागरसूरी

श्रद्धा, भक्ति से मनाया गया तीर्थंकर नेमिनाथ का जन्मोत्सव

मंत्रों और मुद्राओं से पंचाभिषेक अनुष्ठान किया गया

गदग/दक्षिण भारत। स्थानीय राजस्थान जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ के तत्वावधान में जीरावला पार्श्वनाथ सभागृह में 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ भगवान का जन्म कल्याणक महोत्सव मंगलवार को आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी और गणि पद्मविमलसागरजी के सान्निध्य में भव्यता से मनाया गया। 

सभागृह में पीठिका पर विधि-विधान पूर्वक भगवान नेमिनाथ की मनोहारी विशाल प्रतिमा की स्थापना की गई। विविध बहुूल्य सामग्री और जड़ी-बूटियों के द्वारा मंत्रों और मुद्राओं से पंचाभिषेक अनुष्ठान किया गया। 

सैकड़ों श्रद्धालु पुरुष व महिलाएं पूजा के वस्त्र परिधान में सज-धजकर इस उत्सव में सम्मिलित हुए। झूले में बाल नेमिनाथ की स्थापना की गई। इस अवसर पर उपस्थित जनों को संबोधित करते हुए जैनाचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि महापुरुषों की आत्माएं असामान्य कोटि के पुण्य और सत्व की धारक होती हैं, इसलिए जब ब्रह्मांड में विशिष्ट योग बनते हैं, तभी उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाएं आकर लेती हैं। 

तीर्थंकरों और अवतारी महापुरुषों की जन्मपत्रिका में पांच, छह या सात ग्रह उच्च स्थिति के होते हैं। वह मंगलमय पवित्र वेला समग्र ब्रह्मांड के लिए सुख-शांति और उन्नति की कारक होती है। जगत के उस समय में रोग, शोक, भय, पीड़ा, महामारी, दुर्भिक्ष, अकाल मरण और युद्ध आदि नहीं होते, इसलिए तीर्थंकरों के कल्याणकों को कल्याणकारी कहा जाता है। 

ये तीर्थंकर और अवतारी महापुरुष अनेक जन्मों की साधना का पुण्य एकत्रित कर धरा पर अवतरित होते हैं। वे लाखों-करोड़ों लोगों का उद्धार कर देते हैं। महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा प्राप्त करने के लिए इतिहास का अवलोकन करना चाहिए। भारतीय इतिहास ज्ञान और साधना का भंडार है। यहां भोग नहीं योग की प्रधानता रही है।

गणि पद्मविमलसागरजी ने प्रभु नेमिनाथ के जन्म चरित्र का वर्णन किया। स्थानीय जैन समाज के साथ साथ उत्तर कर्नाटक के अनेक क्षेत्रों के श्रद्धालुओं ने महोत्सव में भाग लिया।

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