स्वच्छ भारत: जन आंदोलन की जरूरत

हम लोग भी आगे बढ़कर कर्तव्य निभाएं

भारत को सबसे ज्यादा साफ-सुथरा देश बनाएं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'मन की बात' कार्यक्रम की 124वीं कड़ी में जिन बातों का जिक्र किया, उन पर काम करने से बेहतर भविष्य का निर्माण किया जा सकता है। आज देश के सामने कई चुनौतियां हैं। उन्हें स्वीकार करते हुए सकारात्मक सोच के साथ काम करने से ही हम ऐसे मुकाम पर पहुंच सकते हैं, जिससे अन्य देश प्रेरणा लें। बेशक कई काम ऐसे हैं, जो शुरुआत में असंभव प्रतीत होते हैं, लेकिन ईमानदारी और मेहनत के साथ आगे बढ़ने से उनमें अच्छे नतीजे मिलते हैं। प्रधानमंत्री ने 'स्वच्छ भारत मिशन' का जिक्र करते हुए हकीकत बयान की है कि 'जब देश एक सोच पर एकसाथ आ जाए, तो असंभव भी संभव हो जाता है।' इस मिशन के जरिए लोगों में काफी जागरूकता आई है। सार्वजनिक स्थान काफी साफ-सुथरे नजर आने लगे हैं। पहले, जहां लोग सड़कों, रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों पर कचरा फेंकने से गुरेज नहीं करते थे, अब वे स्वच्छता का ध्यान रखने लगे हैं। कई रेलवे स्टेशन बहुत साफ हो गए हैं। हालांकि अभी बहुत काम करने की जरूरत है। कई लोग इस मामले में बहुत लापरवाह हैं। उन्हें जब मौका मिलता है, वे पान, गुटखा, तंबाकू आदि खाकर इधर-उधर थूकते रहते हैं। इस प्रवृत्ति को रोकने की जरूरत है। स्वच्छता को जन आंदोलन बनाना होगा। इन दिनों सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो चर्चा में हैं, जिनमें विदेशी नागरिक हमारे 'सिविक सेंस' का मजाक उड़ा रहे हैं। वे भारत के प्राकृतिक सौंदर्य और मेहमान-नवाजी की तारीफ करते हैं। उसके साथ ही यह भी कहते हैं कि अगर भारतवासी साफ-सफाई की ओर ध्यान दें तो उनका देश और ज्यादा सुंदर हो सकता है। सड़कों पर कचरा, उफनतीं नालियां, खाद्य पदार्थों पर बैठे मक्खी-मच्छर और पान की पीक से सनी हुईं दीवारें - ये नजारे उनके पर्यटन आनंद में बाधा डालते हैं।

स्वच्छता की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की नहीं होती है। नागरिकों में भी यह भावना होनी चाहिए कि हमें इस देश को स्वच्छ और सुंदर बनाना है। जब हमारे देशवासी जापान जाते हैं तो उसकी स्वच्छता की जरूर तारीफ करते हैं। जापानी दफ्तरों में बॉस से लेकर कर्मचारियों तक, कोई भी सफाई करने में शर्म महसूस नहीं करता। अपने कार्यस्थल को साफ रखना गर्व की बात है। जापानी बच्चों को स्कूलों में सफाई का पाठ पढ़ाया जाता है। वहां प्रधानाचार्य हों या विद्यार्थी, सबको अपने स्कूलों में एकसाथ सफाई करते देखा जा सकता है। जापान में कई जगह तो नालियां इतनी साफ हैं कि उनमें मछलियां तैरती नजर आती हैं! अगर हमारे देश में नागरिक मिलकर, समय-समय पर अपने मोहल्लों और सार्वजनिक स्थानों की सफाई करने लग जाएं तो देश की तस्वीर बदल सकती है। प्राय: यह तर्क दिया जाता है कि 'देश में कूड़ा-कचरा इसलिए ज्यादा है, क्योंकि आबादी ज्यादा है।' ऐसा तर्क देने वाले यह क्यों भूल जाते हैं कि आबादी ज्यादा है तो सफाई करने वाले हाथ भी ज्यादा हैं? अगर हर व्यक्ति स्वच्छता को अपने जीवन का हिस्सा बना ले तो देश साफ-सुथरा क्यों नहीं हो सकता? लोग गंदगी फैलाना ही बंद कर दें तो स्वच्छता को कायम रखना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है। इसके लिए जागरूक होना पड़ेगा। हाल में एक जापानी महिला का वीडियो चर्चा में रहा था, जो अपने बगीचे के पत्तों, फलों व सब्जियों के छिलकों, रसोईघर के कचरे को इकट्ठा कर खाद बनाती हैं तथा उसका इस्तेमाल बगीचे में करती हैं। इससे उनका बगीचा खूब हरा-भरा रहता है और भरपूर फल-सब्जियां देता है। क्या हम ऐसा नहीं कर सकते? हमारी कई सब्जी मंडियों में सफाई की क्या हालत है? वहां सड़े हुए फलों-सब्जियों के ढेर लगे होते हैं। कई जगह लोग सूखी घास और पत्तियों को आग लगाकर वायु प्रदूषण फैलाते हैं। हम लोग भी आगे बढ़कर कर्तव्य निभाएं, गंदगी न फैलाएं तो भारत को दुनिया का सबसे ज्यादा साफ-सुथरा देश बना सकते हैं।

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