संस्कार शिविर के प्रबल प्रेरक हैं संतश्री पदमचंद: साध्वीश्री इंदुप्रभा

जैन तत्व के विभिन्न आयामों को चित्र एवं मॉडल तथा लेखों से प्रदर्शित किया गया

अनेक श्रावक-श्राविकाओं ने तप संकल्प लिया

बेंगलूरु/दक्षिण भारत। स्थानीय श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन श्रावक संघ, अलसूर के तत्वावधान में महावीर भवन में साध्वी इंदुप्रभाजी के सान्निध्य में मुनि डॉ. पदमचंद जी के 62वें जन्मदिवस प्रसंग पर 'जैनत्व की ओर’ विषय पर अनुभव प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। 

इस प्रदर्शनी में जैन तत्व के विभिन्न आयामों को चित्र एवं मॉडल तथा लेखों से प्रदर्शित किया गया और आगंतुकों को विभिन्न विषयों की जानकारी दी गई। अध्यक्ष धनपत राज बोहरा, मंत्री अभय कुमार बांठिया तथा तेजराज लोढ़ा ने प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। 

महिला मंडल, युवक संघ, नवकार बहुमंडल, वर्धान बालक मंडल, जय ब्राह्मी बालिका मंडल, जे पीपी महिला फाउंडेशन के सदस्यों ने प्रदर्शनी का संयोजन किया। जयमल जैन श्रावक संघ के पदाधिकारियों सहित सैकड़ों लोगों ने प्रदर्शनी का दौरा किया। 

अपने माता-पिता के वात्सल्य से वंचित छत्र छाया संस्था में रह रहे बच्चों ने भी प्रदर्शनी का अवलोकन किया। मोतीलाल रांका, शांतिलाल बोहरा, मनोहरलाल डूंगरवाल ने विजेताओं का चयन किया। प्रदर्शनी में नाटिकाओं के जरिए इतिहास की जानकारी दी गई। 

प्रवचन में साध्वी इंदुप्रभाजी ने डॉ. मुनि पदमचंद जी को जन्मदिन की बधाई देते हुए कहा कि वे प्रबल पुरुषार्थ से श्रद्धेय बने। उन्होंने 64 सती और बड़ी साधु वंदना पर विस्तृत विवेचन कर जिनशासन को अनमोल भेंट दी है। पदम मुनिजी ने सदैव बच्चों में भविष्य देखा, इसलिए वे संस्कार शिविर के प्रबल प्रेरक हैं। 

सामायिक दिवस पर अपने प्रवचन में साध्वी निपुणप्रभा जी ने कहा कि मात्र साधना से ही हम अपना जन्म सार्थक कर सकते हैं। साध्वी वृद्धिप्रभा जी ने कहा कि संत पदमचंदजी ने युवावस्था में संयम ग्रहण कर जैन और जैनेतर दर्शनों का शोध पूर्ण अध्ययन किया और प्रभावशाली वक्ता बने। उनमें सकारात्मकता का विशेष गुण है। उन्होंने ही जैन कैलेंडर प्रारंभ किया था।

पदमचंद जी दूरदृष्टा और पुरुषार्थी हैं। संघ की ओर से शुभकामना व्यक्त करते हुए संघ मंत्री अभय कुमार बांठिया ने बताया कि डॉ. मुनि पदमचंदजी संकल्प के धनी और शिष्य संपदा के ज्ञान विकास हेतु जुनून रखने वाले संत हैं। इस अवसर पर अनेक श्रावक-श्राविकाओं ने तप संकल्प लिया। साध्वी शशिप्रभाजी मंगल पाठ सुनाया।

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