बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के चिकपेट स्थित आदिनाथ जैन संघ में चातुर्मासार्थ विराजित मुनिश्री आर्यशेखरविजयजी ने कहा कि जिस प्रकार पौधे में कांटे ज्यादा और फूल कम, सरोवर में कीचड़ ज्यादा और कमल कम, जगत में दुर्जन ज्यादा और सज्जन कम मिलते हैं, वैसे ही संसार में दुख ज्यादा और सुख कम होता है।
दुःख में तो भगवान याद आते ही हैं लेकिन सुख में भी भगवान को खुमारी से याद करना चाहिए। हमें शरण, स्मरण और आचरण तीनों में भगवान को साथ रखना चाहिए। हृदय को कठोर बनाएंगे तो हृदय में शैतान बैठेगा लेकिन हृदय को कोमल बनाएंगे तो प्रभु अवश्य बैठेंगे।
हमें हमारी दृष्टि की जांच करनी चाहिए, चन्द्र में हम कलंक, सागर में खाराश, नदी में कीचड़ देखते हैं, हम जैसी दृष्टि रखेंगे वैसी हम सृष्टि पाएंगे। जैसे हर गांव में मंदिर के साथ श्मशान भी होता है, वैसे ही अपने जीवन में गुणों की प्रतिष्ठा करने वाला मंदिर और दोषों का दफन करने वाला श्मशान भी होना चाहिए।
संतश्री ने कहा कि विष और अमृत दोनों एक ही समंदर में हैं। शंकर और कंकर एक ही मंदिर में हैं। यह जमाना चुनाव का है, इसलिए मनुष्य के अंदर विद्यमान प्रभुता और पशुता में से हमें प्रभुता को चुनना चाहिए।