गदग/दक्षिण भारत। राजस्थान जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ के तत्वावधान में शुक्रवार को जीरावला पार्श्वनाथ सभागृह में विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए जैनाचार्य विमलसागरसूरीजी ने कहा कि सरलता, पवित्रता, सात्विकता, निःस्वार्थ मनःस्थिति और संयमी जीवनवृत्ति ही मनुष्य की साधना बन जाती है। मंत्र और विद्याएं सहज सिद्ध हो जाती हैं। ऐसी सत्वशाली आत्माओं को देवता भी नमस्कार करते हैं। वे परोपकार के लिए ही दुनिया में आयी होती हैं।
आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि उपाध्याय भानुचंद्र और उपाध्याय शांतिचंद्र नामक दो जैन मुनियों से अब्बुल फ़जल ने भारतीय संस्कृति, साहित्य और प्राच्य विद्याओं का ज्ञान प्राप्त किया था। उसने मूल नक्षत्र में जन्मी अपनी बिटियां के दोष निवारण के लिए उक्त जैन मुनियों द्वारा करवाए गए शांति विधान और उनके उपकारों का स्मरण किया है।
इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि भारतीय विद्याओं और साधनाओं का प्रभाव हर काल में रहा है। वर्तमान समाज को यह समझने की आवश्यकता है कि भोग-विलास और शौक-मौज से परे सरल सात्विक पवित्र जीवन ही महान उपलब्धियों का भंडार बनता हैं। विद्याएं और साधनाएं तुच्छ मलिन कामनाओं की पूर्ति के लिए नहीं, बल्कि महान ध्येय को प्राप्त करने के लिए होनी चाहिए। साधनाओं के समक्ष भौतिक उपलब्धियों का मूल्यांकन नहीं हो सकता।
जैन संघ के सुरेश बोहरा ने बताया कि गणि पद्मविमलसागरजी ने रात्रिकालीन ज्ञानसत्र में युवाओं को संबोधित किया। राजेश श्रीश्रीमाल ने बताया कि रविवार को दूसरा जागरण सेमिनार आयोजित होगा।