चेन्नई/दक्षिण भारत। यहां पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम जैन मेमोरियल ट्रस्ट में विराजमान डॉ. समकित मुनिजी म.सा. ने गुरुवार को प्रवचन के दौरान कहा कि पुण्य जैसे ही कमजोर होता है, हम गलत पर गलत निर्णय लेते जाते हैं।
उन्होंने कहा कि आगम एक ऐसा दर्पण है जिसके माध्यम से हम स्वयं को जान सकते हैं। जब हम स्वयं को पहचान लेते हैं, तब संसार सागर में भटकना नहीं पड़ता। ‘मैं कौन हूं?'- यह प्रश्न जब स्वयं से किया जाए और उसका उत्तर मिल जाए, तो जीवन की दिशा स्पष्ट हो जाती है।
डॉ. मुनिजी ने समझाया कि आगम के माध्यम से हम भूतकाल और भविष्यकाल - दोनों को जान सकते हैं। यह आगम हमारे जीवन की वह छोटी पुस्तिका है, जैसे इलेक्ट्रॉनिक वस्तु खरीदने पर एक गाइडबुक मिलती है, उसी प्रकार जीवन को चलाने के लिए भी एक सही मार्गदर्शन देने वाला ग्रंथ है।
उन्होंने बच्चों के उदाहरण से समझाया कि जैसे बचपन में पोलियो की दवा दी जाती है ताकि आगे चलकर शरीर में कोई समस्या न हो, वैसे ही बचपन से ही जिनवाणी का टीका लगाना चाहिए ताकि जीवन में कोई मानसिक या आध्यात्मिक परेशानी न हो।
उन्होंने कहा कि जिनवाणी जीवन को सफल बनाती है। अगर पुण्य की चादर छोटी है और इच्छाएं बड़ी हैं, तो हमें इच्छाओं को समेटना सीखना चाहिए। सागर जैसी इच्छा रखने पर भी इच्छाएं पूरी नहीं होतीं।
इस अवसर पर सभा में अध्यक्ष चंद्रप्रकाश तालेड़ा, कार्याध्यक्ष मिठालाल पगारिया, धर्मीचंद कोठारी, उत्तमचंद सुराणा, सुरेश लुनावत, संतोष पगारिया और मंच संचालन मंत्री विनयचंद पावेचा ने किया।