बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के सुमतिनाथ जैन संघ यलहंका में विराजित आचार्यश्री हस्तीमलजी के शिष्य श्री ज्ञानमुनिजी के सान्निध्य में रविवार को लोकेश मुनि जी ने उत्तराध्ययन सूत्र के चौथे अध्याय का वर्णन करते हुए कहा कि इस अमूल्य जीवन को पाकर प्रमाद का पूर्ण त्याग करना चाहिए।
प्रमादी और आलसी बनकर इस बहुमूल्य जीवन को व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। एक एक क्षण का सदुपयोग करते हुए मनुष्य जीवन को देव, गुरु व धर्म में लगाना चाहिए। हम प्रमाद सब के लिए करते है किन्तु इसका फ़ल हमें स्वयं को भोगना पड़ता हैं।
संतश्री ज्ञान मुनि जी ने सोमवार को भगवान महावीर के अंतिम देशना के बारे में बताते हुए कहा कि किसी के जीवन की अंतिम बात सबसे महत्व की होती हैं और वो याद में रह जाती हैं, उसी प्रकार प्रभु महावीर की अंतिम देशना हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
मुनिश्री ने कहा कि एक बार बीती हुई जवानी, बहता हुआ पानी, गया हुआ वक्त और बोले हुए शब्द छूट जाते हैं तो वापस लौट कर नहीं आते। ज़िन्दगी के हर दौर के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि दस वर्ष तक की उम्र में इंसान चंचल होता हैं, बीस वर्ष की उम्र में बेपरवाह, तीस में तीखा, चालीस में जिम्मेदार, पचास में समझदार, साठ में अनुभवी, सत्तर में बीमार, अस्सी में घरवाले बेपरवाह, नब्बे में बेसुध हो जाता है। सौ में भगवान के द्वार खुल जाते हैं।
सोमवार को प्रवचन में ज्ञानचंद लोढ़ा, माणकचन्द कोठारी परिवार की विशेेष उपस्थिति थी। सभा में अध्यक्ष प्रकाशचंद कोठारी ने स्वागत किया। सभा का संचालन महामंत्री मनोहर लाल लुकड़ ने किया।