बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के सुमतिनाथ जैन संघ यलहंका में विराजित आचार्यश्री हस्तीमलजी के शिष्य श्री ज्ञानमुनिजी के सान्निध्य में शनिवार को लोकेश मुनि जी ने चार प्रकार के प्रमाद में से एक आलस्य प्रमाद पर व्याख्या करते हुए कहा कि कोई भी काम पूरा न करते हुए बाद में कर देंगे ऐसा सोचने वाले आलस्य प्रमाद के शिकार होते हैं जो कि सही नहीं है।
जीवन में सफल होने के लिए कभी भी आलस्य नहीं करना चाहिए। ज्ञानमुनि जी ने कहा कि प्रभु के गुण रोजाना याद करें। प्रभु वाणी के आधार हैं। प्रभु का भजन करने से हजारों कर्मों की निर्जरा होती है। प्रभु का भजन करने से आलस्य दूर होता है, जागृति आती है और जागते रहने वाले को कोई ठगता नहीं।
हमें अपने स्वयं को जागृत करना चाहिए। दिन के 24 घंटे होते हैं। हर 48 मिनट में दो घड़ी होती है, दिन भर में दो घड़ी हमें धर्म में लगानी चाहिए बाकी की 58 घड़ी अपने कर्मों एवं कामों के लिए उपयोग करनी चाहिए।
मुनिश्री ने कहा कि खाने से ज्यादा खिलाने में ज्यादा आनंद आता है। पहले के लोगों में साधर्मिक व्यक्तियों को खाना खिलाने में खुशी होती थी। खाना खान से बदबू और खिलाने में खुशबू आती है इससे खिलाने वाले को बहुत ही खुशी होती है। खिलाने वाले को दुनिया याद करती है।
उन्होंने कहा कि सांस का कोई भरोसा नहीं है, हर पल हमें भगवान को याद करना चाहिए। संघ के अध्यक्ष प्रकाशचन्द कोठारी ने सभी का स्वागत किया। सभा का संचालन मनोहरलाल लुकड़ ने किया।