चेन्नई/दक्षिण भारत। एक-एक धागा अलग-अलग पड़ा है कचरे के रूप में नजर आता है, वही रस्सी का रूप ले ले तो हाथी की क्षमता उसमें आ जाती है। उक्त विचार जैन संत कमल मुनि जी केएलपी जैन मंदिर पर संबोधित करते कहा कि संगठन से और कोई बड़ा धर्म वर्तमान में नहीं हो सकता है। इसकी नींव धर्म साधना उपासना और मोक्ष की मंजिल खड़ी की जा सकती है।
मुनि कमलेश ने बताया कि संगठन के माध्यम से असंभव भी संभव हो जाते हैं, दूसरी पल सफलता मिल जाती है संगठन में विश्वास नहीं अहिंसा उसके पास नहीं। उन्होंने कहा कि महापुरुषों ने अपने से ज्यादा महत्व संगठन को दिया है, उसको मजबूत करने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया।
राष्ट्रसंत ने कहा कि अपने अहंकार और स्वार्थ के लिए संगठन को तोड़ता है वह महापापी कहलाता है। जो संगठन को बढ़ाने के लिए सब कुछ लुटा देता है वह भगवान कहलाता है। जैन संत ने बताया कि कोई भी धर्म विघटन और बिखराव की इजाजत नहीं देता है। संस्था किसी भी नाम से हो इसका उद्देश्य संगठन को मजबूत करने का हो तो पूजनीय है।
उपन्यास प्रवर निर्मोह सुंदर विजय जी ने कहा उपासना पद्धति को लेकर बिखरा होता है वहां पर धर्म नहीं रहता है। दोनों महापुरुषों ने समाज को समन्वय का आवाहन किया। 9 जुलाई को साहूकार पेट जैन स्थानक भवन में मुनि कमलेश के सानिध्य में सूर्योदय पर प्रार्थना सुबह 9:15 बजे प्रवचन 2:30 बजे ज्ञान चर्चा सूर्यास्त पर प्रतिक्रमण, रात्रि 8:30 बजे ज्ञान चर्चा, चारों महीने सुबह 6 बजे से शाम को 6 बजे तक महामंत्र प्रकार का जाप घर घर पर होगा।