बेंगलूरु/दक्षिण भारत। स्थानीय प्रवासी राजस्थानी कर्नाटक संघ के तत्वावधान में रविवार को विश्वकर्मा जांगीड़ भवन में विभिन्न राजस्थानी समाज के सहयोग से गौभक्ति व संतश्री नरेशमुनिजी का सत्संग कार्यक्रम आयोजित हुआ। सुबह 9.31 बजे भवन में पटेल समाज, राजपूत समाज व मरुधरा जैन नवयुवक व महिला मंडल के सदस्यों सहित विभिन्न समाज के पदाधिकारियों ने जयघोष के साथ नरेश मुनिजी का स्वागत किया।
गौभक्ति में दिलखुश जैन एंड पार्टी द्वारा भजन की प्रस्तुति दी गई। प्रवासी राजस्थानी कर्नाटक संघ के महामंत्री जवरीलाल लुनावत जैन ने संतों का स्वागत किया। उन्होंने भवन उपलब्ध कराने के लिए जांगीड़ समाज को धन्यवाद दिया और कहा कि हम सभी प्रवासियों को संगठित होने का यह सुनहरा अवसर संतश्री नरेश मुनिजी के सान्निध्य में मिल रहा है, अतः हम सभी को एकजुट होने का आज संकल्प लेना चाहिए।
सभा में राजपूत समाज, महाराणा प्रताप नवयुवक मंडल, करणी सेना, राजपुरोहित संघ व राजपुरोहित समाज, आंजणा पटेल कलबी समाज, पटेल नवयुवक मंडल, सीरवी समाज, घांची समाज, रावत समाज, रावणा राजपूत समाज, गौड़ ब्राह्मण समाज,नाथ समाज, गौस्वामी समाज, दर्जी समाज, जाट समाज, विश्नोई समाज, माली समाज, माहेश्वरी समाज, ब्राह्मण समाज,
देवासी समाज, जैन समाज, सैन समाज, प्रजापत समाज, कुमावत समाज, वैष्णव समाज, चारण समाज, खत्री समाज के सभी अध्यक्षों ने जैन संत नरेशमुनिजी को आदर की चादर भेंट की तथा 'प्रवासी राजस्थानी सर्व समाज गौरव पद’ से अलंकृत कर अभिनंदन पत्र भेंट किया।
इस मौके पर प्रवासी संघ ने सभी समाज के अध्यक्ष, मंत्री का सम्मान किया तथा उन्हें मंचासीन किया। सत्संग कार्यक्रम में साध्वियों ने मारवाड़ी भाषा में प्रवचन दिया तथा उपस्थित जनों को धर्म का महत्त्व बताया। मुनिश्री शालिभद्रजी ने भजन से अपने प्रवचन की शुरुआत करते हुए मारवाड़ी समाज को संगठित होने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि बंटोगे तो कटोगे। प्रत्येक समाज में अनेक गुट हो गए हैं और आज जो परिस्थिति दक्षिण भारत में मारवाड़ी समाज की बनी हुई है उस पर हम सभी को ईमानदारी से मंथन व चिंतन करना होगा एवं संगठित होना ही पड़ेगा।
मुनिश्री ने व्यक्ति के चार प्रकार के बारे में बताते हुए कहा कि प्रभु राम हमारी भारतीय संस्कृति के उज्ज्वल नक्षत्र हैं। धर्म सुरक्षित रहेगा तो हम सभी सुरक्षित रहेंगे। सनानत धर्म शाश्वत धर्म है। हमें संस्कृति की पहचान कर उसे सुरक्षित रखना चाहिए। शालिभद्रमुनिजी ने उपस्थित जनों से एकजुट होकर बेंगलूरु में एक राजस्थानी भवन निर्माण की ओर प्रयास करने की बात कही।
इस मौके पर संतश्री नरेशमुनि ने महाभारत कथा के माध्यम से उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि जो प्रभु के चरणों में बैठता है उसकी कभी हार नहीं होती और जो भगवान के सिर पर बैठता है उसकी कभी जीत नहीं होती। किसी की कार्य में सफल होने के लिए प्रेम और समर्पण होना अति आवश्यक है। प्रेम कभी धोका नहीं देता अपितु प्रेम व्यक्ति को उच्चाईं पर पहुंचाता है। प्रभु शरण में ही कल्याण निहित है।
संतश्री ने कार्यक्रम में शामिल विभिन्न समाज के सदस्यों की उपस्थिति व उनके अनुशासन की सराहना करते हुए कहा कि किसी भी कार्य को पूर्ण व सफल करने के लिए सभी की जरूरत होती है। आगे आगे काम करने वाले तो सबको दिखते हैं परन्तु नींव व शुरुआती कार्य करने वाले लोग भी उसकी सफलता के लिए उतने ही महत्त्वपूर्ण होते हैं।
मुनिश्री ने इस कार्यक्रम की सफलता का श्रेय सभी को देते हुए कहा कि एकजुटता का अपना एक महत्त्व है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि यदि हम एक दूसरे का साथ देंगे तो हम सभी सफल होंगे। हमें एक और एक दो नहीं, अपितु ग्यारह बनना है। आज छोटे बड़े का विचार छोड़कर एकजुट रहने की आवश्यकता है।
उन्होंने उपस्थित जनों को पुष्कर भवन में उनके चातुर्मास प्रवचन श्रवण करने के लिए आमंत्रित किया तथा नशे की प्रवृति से दूर रहने की प्रेरणा दी। कार्यक्रम का संचालन केवलचंद सालेचा व अविनाश गुलेच्छा ने किया।