कोप्पल/दक्षिण भारत। शुक्रवार को स्थानीय महावीर समुदाय भवन में चौबीस तीर्थंकर की प्राचीन विद्याओं के आधार पर आयोजित विराट पूजन अनुष्ठान में उपस्थित साधकों से जैनाचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि पत्नी और परिवार रागात्मक भाव है, जबकि शस्त्र-अस्त्र द्वेषात्मक भाव है। दोनों ही संपूर्ण आत्म उन्नति में बाधक हैं।
यही कारण है कि तीर्थंकरों के साथ उनकी पत्नी और परिवार नहीं होता। न ही उनके परिजनों की पूजा होती है। इसी तरह तीर्थंकरों के साथ कोई शस्त्र-अस्त्र नहीं होते। शुद्ध वीतराग स्वरूप होता है। वह अहिंसा, प्रेम, मैत्री और शांति का प्रतीक है। तीर्थंकर अरिहंत अपने साधना काल में किसी को तनिक भी दुःख नहीं पहुंचाते। किसी से बदला नहीं लेते। यह समत्व की निर्मल भूमिका होती है। वे अपकारी के प्रति भी उपकार की वर्षा करते हैं।
आचार्य ने कहा कि भक्तियोग सबसे सरल योग है। इसमें अद्भुत शक्ति होती है। जो निष्काम भाव से भगवान की भक्ति करते हैं, वे कभी निष्फल नहीं होते। जैनदर्शन के अनुसार सर्व दोषरहित भगवान की भक्ति ही शांति, उन्नति और मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करती है। उसका मानना है कि सर्व दोषरहित परमात्मा ही हमें दोष मुक्त बना सकते हैं।
गणि पद्मविमलसागरजी ने कहा कि उपकार स्मरण महोत्सव के अंतर्गत शुक्रवार को पूजन अनुष्ठान में विविध मंत्रों और मुद्राओं के द्वारा जड़ी-बूटियों एवं बहुमूल्य सामग्रियों से तीर्थंकर प्रतिमाओं के पंचाभिषेक किए गए।
तत्पश्चात चंदन धूप, दीपक, अक्षत, नैवेद्य और फल पूजा के सामूहिक विधान हुए। मोगरे के फूलों से सैकड़ों भक्तों ने पुष्पांजलि अर्पित की। कोप्पल के मुनि वीरविमलसागरजी ने बताया कि गीत-संगीत और भक्ति नृत्यों की मनोहारी प्रस्तुतियों ने अनुष्ठान को यादगार बना दिया। विधिकारक विजय गुरु ने विधि-विधान करवाया।