कोप्पल/दक्षिण भारत। गुरुवार को आषाढ़ी नूतन माह के शुभारंभ के अवसर पर गुरुवार को महावीर समुदाय भवन में आयोजित विशिष्ट धार्मिक कार्यक्रम में जैनाचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि मैत्री भावना का विस्तार भाव मंगल है।
सर्वमंगल की कामना में ही स्व मंगल की प्रार्थना निहित है। सिर्फ चाहने से अपना मंगल नहीं हो जाता, सबके आनंद-मंगल की प्रार्थना से अपना मंगल होता है। स्वार्थवृत्ति नहीं, परमार्थ की भावना से अपना और अपने परिवार का मंगल होगा।
उन्होंने कहा कि शत्रुता को दूर करने और विश्व में शांति की स्थापना के लिए मैत्री भावना का विस्तार होना चाहिए। मैत्री की वह भावना अपने समाज और परिचित व्यक्तियों से आगे बढ़कर सर्व जीवों तक व्यापक बननी चाहिए।
आध्यात्मिक उन्नति का वह चरम बिंदु है। जब सर्वजीवों के प्रति मैत्री होती है तो किसी को भी दुःख देने का मन नहीं होता और दूसरों के दुःख दूर करने की तत्परता जगती है। मैत्री की भावना ही करुणा भावना को जन्म देती है। फिर किसी की प्रगति देखकर ईर्ष्या या जलन नहीं होती, बल्कि मन प्रमुदित होता है। दूसरों की अच्छाइयों को देखकर प्रसन्न होना, प्रमोद भावना है। मैत्री,
प्रमोद और कारुण्य मनोभावनाओं में जीवन का विरल संगीत छिपा है। ऐसे दिव्य संसार में न युद्ध होंगे, न हत्या और ना ही कोई हिंसा।
तेरापंथ के आकाश मुनिजी ने कहा कि जैनशास्त्रों ने अहिंसा की सूक्ष्मतम परिभाषा दी है। सूक्ष्म जीव-जंतुओं तक को बचाने की भावना धर्म और शास्त्रों की व्यवहारिक सार्थकता है। मात्र कायिक और वाचिक पाप ही नहीं होते, मन की भूमिका पर जाने-अनजाने हजारों-हजारों पाप, अपराध होते हैं। वे वाचिक और कायिक पापों से कई गुना अधिक निकृष्ट होते हैं।
आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी और गणि पद्मविमलसागरजी के सान्निध्य में सभी श्रमणों ने सामूहिक विशिष्ट मंगलपाठ प्रस्तुत किया। मंत्रजाप के बारे में तलस्पर्शी विवेचना हुई। बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने कार्यक्रम में भाग लिया। राग भूपाली में चौबीस तीर्थंकरों के संगीतमय सामूहिक मंत्रजाप हुए।
दूसरा कार्यक्रम तेरापंथ भवन में आयोजित हुआ, जिसमें दो परंपराओं के मिलन से समाज में खुशी की लहर छा गई। आचार्य विमलसागरसूरीश्वर ने आपसी प्रेम, सामाजिक संगठन और सिद्धांतों के प्रति अपनी कटिबद्धता को महत्वपूर्ण बताया।
गणि पद्मविमलसागरजी, आकाश मुनिजी और हेमेंद्र मुनिजी ने भी धर्मसभा को संबोधित किया। वहां से श्रमण संघ मेहता परिवार के निवास स्थान पर पहुंचा, जहां स्वस्तिक रचना और मंगल कलशों से महिलाओं व कन्याओं ने संतों का स्वागत किया।