पाकिस्तान के सिंध प्रांत में तीन हिंदू बच्चियों और उनके चचेरे भाई पर धर्मांतरण का दबाव डाले जाने की घटना एक गंभीर त्रासदी को बयान करती है। इसने वहां अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के सामने मौजूद असुरक्षा और भेदभाव को उजागर कर दिया है। सोशल मीडिया की ताकत और सामाजिक एकता का नतीजा यह रहा कि पुलिस ने इन्हें मुक्त करा लिया है। पाकिस्तान में अल्पसंख्यक उपेक्षित हैं। उनका जबरन धर्मांतरण कराया जाता है। इस कृत्य को अंजाम देने के लिए कई गिरोह बने हुए हैं। उनके लोग आस-पास के इलाकों में अल्पसंख्यक समुदाय की छोटी बच्चियों को निशाना बनाते हैं। सिंध में जिन चार बच्चों का धर्मांतरण कराया जा रहा था, उनकी उम्र बहुत छोटी है। उन्हें धर्म, आस्था, आध्यात्मिकता, परलोक आदि के बारे में पता ही नहीं होगा। फिर वे धर्मांतरण के लिए अपनी सहमति कैसे दे सकते हैं? स्पष्ट है कि उन पर दबाव डाला जा रहा था। प्राय: ऐसे मामलों में बच्चों को यह धमकी दी जाती है कि 'अगर तुमने मजहब कबूल नहीं किया तो तुम्हारे परिवार की जान खतरे में होगी!' ज्यादातर बच्चे इस धमकी से डर जाते हैं। वे मीडिया और अदालत के सामने बयान दे देते हैं कि उन्होंने अपनी मर्जी से मजहब कबूल किया है। बच्चों के परिजन जानते हैं कि यह बयान दबाव में दिया गया है, लेकिन वे कुछ नहीं कर पाते, क्योंकि पाकिस्तानी मीडिया, पुलिस और अदालतों का झुकाव कट्टरपंथियों की ओर ही होता है। सिंध में धर्मांतरण के एक चर्चित मामले में स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा था कि एक बच्ची के माता-पिता अपनी फरियाद लेकर इस उम्मीद के साथ अदालत में गए थे कि वहां उन्हें इंसाफ मिलेगा, लेकिन न्यायाधीश उनके आंसू देखकर मुस्कुरा रहे थे।
जबरन धर्मांतरण के मामलों को लेकर पाकिस्तान की दुनियाभर में निंदा होने से अब स्थानीय प्रशासन कुछ सतर्क रहने लगा है। वहां अल्पसंख्यक समुदाय के लोग अपने साथ होने वाली ऐसी ज्यादती का मुद्दा सोशल मीडिया पर उठाते हैं। पहले, जहां पुलिस उन्हीं मामलों की ओर ध्यान देती थी, जिनमें पीड़ित संपन्न परिवारों से होते थे। अब ऐसे मामले भी सुर्खियों में आ जाते हैं और पुलिस को सक्रियता दिखानी पड़ती है, जिनमें पीड़ित गरीब परिवारों से होते हैं। यहां भारतवासियों की भूमिका अत्यंत सराहनीय है, जो सोशल मीडिया पर आने वाली ऐसी जानकारी को साझा करते हैं। उन्होंने कई बार अंतरराष्ट्रीय संगठनों से लेकर पाकिस्तानी नेताओं और पुलिस अधिकारियों से तीखे सवाल पूछे हैं। इसका बड़ा असर हुआ है। हालांकि अभी बहुत कुछ करना बाकी है। सिंध में अल्पसंख्यकों के जबरन धर्मांतरण संबंधी गतिविधियां कई दशकों से जारी हैं। इनमें छोटी बच्चियों को निशाना बनाने की बड़ी वजह है। अगर सिंध में हिंदू बच्चियां ही नहीं होंगी तो पूरे समुदाय का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। पाकिस्तान की सरकार, फौज, आईएसआई और कट्टरपंथी जमातें एक साजिश के तहत ऐसा करवा रही हैं, ताकि अगले कुछ वर्षों में सिंध में कोई हिंदू न रहे। केपीके, बलोचिस्तान, पंजाब में थोड़े-से हिंदू रह गए हैं। सिंध में लगभग 49 लाख हिंदू हैं। अगर जबरन धर्मांतरण का सिलसिला यूं ही जारी रहा तो यह तादाद और कम हो सकती है। पाकिस्तान में इन घटनाओं को रोकने के लिए कई सुझाव दिए जाते हैं, जैसे- पुलिस को संवेदनशील एवं निष्पक्ष बनाना, सख्त कानून लागू करना, सहिष्णुता को बढ़ावा देना आदि। सवाल है- ऐसा करेगा कौन? जब पूरा तंत्र ही अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो तो इन सुझावों का कोई महत्त्व नहीं रह जाता है। ऐसे मामलों में बेहतरीन विकल्प यही है कि अपने बच्चों को जागरूक किया जाए, उन्हें गलत इरादा रखने वाले गिरोहों से सावधान किया जाए, सोशल मीडिया पर ऐसा ग्रुप बनाया जाए जो पीड़ित परिवारों की आवाज बुलंद करे, उन्हें कानूनी सहायता दे। भारतवासियों और भारत सरकार, दोनों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाक का पर्दाफाश करना होगा। इससे पाकिस्तान की सरकार, पुलिस और न्यायपालिका पर दबाव पड़ेगा। उन्हें अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए विवश होकर काम करना पड़ेगा।