होसपेट/दक्षिण भारत। स्थानीय आदिनाथ जैन श्वेतांबर संघ के तत्वावधान में शुक्रवार को जैन धर्मशाला में आयोजित अपने प्रवचन में आचार्यश्री विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि मनुष्य के जीवन पर धर्म और परंपराओं के बेहद उपकार हैं। कोई भी समझदार व्यक्ति उन्हें नकार नहीं सकता।
आज हम सिर्फ अपनी इच्छाशक्ति और परिवार की बदौलत ही उजले नहीं हैं, हमारी सफलता, श्रेष्ठता, शाकाहारी जीवनशैली और सुसंस्कारों की विरासत में धर्म तथा परंपरा का सर्वाधिक योगदान हैं, इसलिए धर्म और परंपराओं को कोसना छोड़ना होगा। इतिहास को पढ़ने और उसकी शिक्षाओं को ग्रहण करने की मनोवृत्ति बनानी होगी।
जीवन में चमत्कार या परिवर्तन रातोंरात नहीं हो जाते। धर्म और समाज की उज्ज्वल परंपराओं को जीवंत रखने और भलीभांति आगे बढ़ने में कई-कई पीढ़ियों का बलिदान लग जाता है, तब उज्ज्वल परिवार और श्रेष्ठ समाज नसीब होते हैं।
जैनाचार्य ने आगे कहा कि भ्रष्टताएं सीखनी नहीं पड़ती, सदाचार और संस्कार सीखने पड़ते हैं। एक परिवार को पचास वर्ष तक चलाना भी सरल नहीं होता तो धर्म और परंपराओं को सदियों-सदियों तक उज्ज्वलता के साथ गतिशील रखना थोड़ा भी सरल नहीं, अत्यंत कठिन है। इसलिए बलिदान देने की इच्छाशक्ति जगानी चाहिए। समाज को बांटने की नहीं, जोड़ने की कोशिशें करनी चाहिएं।
गणि पद्मविमलसागरजी ने बताया कि शनिवार को सभी जाति-वर्गों की सार्वजनिक सभा का आयोजन किया गया है जिसमें मूर्तिपूजक, स्थानकवासी, तेरापंथी समाज के साथ-साथ राजपूत, राजपुरोहित, माहेश्वरी, आंजना पटेल, ब्राह्मण, गुजराती पटेल, चौधरी, माली, घांची, सोनी, सुथार, खंडेलवाल, दर्जी आदि अनेक समाज के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।