Dakshin Bharat Rashtramat

दमन और दुष्प्रचार का चीनी मॉडल

यह भारत के लिए भी चुनौती है

दमन और दुष्प्रचार का चीनी मॉडल
तिब्बत की डेमोग्राफी बदल रहा चीन

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य इंद्रेश कुमार ने 'चीन द्वारा तिब्बत एवं हिमालयी क्षेत्र में बौद्धों की पहचान और उनकी संस्कृति को कमजोर करने की कोशिश' के बारे में जो खुलासा किया है, उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुद्दा बनाने की जरूरत है। इस समय जहां कई देशों के बीच तनाव का माहौल है और सैन्य संघर्ष चल रहे हैं, चीन चुपचाप अपनी साजिशों में लगा हुआ है। चूंकि चीन में मीडिया पूरी तरह सरकार द्वारा नियंत्रित है, इसलिए बहुत कम जानकारी ही बाहर आती है। चीन तिब्बती बौद्धों की न सिर्फ पहचान खत्म कर रहा है, बल्कि नई पीढ़ी को भ्रमित करने की कोशिश भी कर रहा है। चीन का सरकारी मीडिया दलाई लामा के बारे में खूब दुष्प्रचार करता है। उसकी वेबसाइट पर ऐसी ढेरों झूठी कहानियां मौजूद हैं, जिनमें दावा किया जाता है कि 'पहले तिब्बत बहुत गरीब था ... लोगों के पास खाने-पीने के लिए कुछ नहीं था ... जब कोई त्योहार आता तो आम लोगों का सबसे बड़ा सपना यह होता था कि वे पेट भरकर खाना खाएं!' जब तिब्बती किशोर और युवा ऐसी मनगढ़ंत कहानियां पढ़ते हैं, तो उनके मन पर क्या प्रभाव पड़ता है? कुछ महीने पहले सोशल मीडिया पर तिब्बती बच्चों के एक वीडियो ने बहुत लोगों का ध्यान आकर्षित किया था, जिसमें उनकी दिनचर्या दिखाई गई थी। वे बच्चे सुबह उठते हैं, हाथ-मुंह धोते हैं, नाश्ता करते हैं। उसके बाद अपनी पाठ्यपुस्तकें निकालकर जोर-जोर से पढ़ते हैं। वे चीनी भाषा की पुस्तकें थीं, जिनमें सीसीपी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कथित महानता के किस्से लिखे हुए थे।

चीन में 91 प्रतिशत से ज्यादा आबादी 'हान' जाति के लोगों की है। उन्हें तिब्बत में बसाया जा रहा है, ताकि डेमोग्राफी बदल जाए। इसके तहत हान युवकों की तिब्बती युवतियों से शादियां कराई जा रही हैं। चीनी मीडिया ऐसे दंपतियों के इंटरव्यू खूब प्रसारित करता है। वह उन्हें बहुत खुशहाल दिखाता है। ऐसी शादियों को सफलता और सौभाग्य की कुंजी बताता है। उदाहरण के लिए, एक तिब्बती युवती की कहानी इस तरह पेश की गई थी कि उसके परिवार के पास जमीन थी, लेकिन वे गरीब थे। बाद में उस युवती की शादी एक ऐसे चीनी युवक से हुई, जिसे उद्यान विज्ञान की जानकारी थी। उसकी मदद से वह परिवार फलों-सब्जियों की खेती करने लगा। चीनी युवक के संपर्कों के कारण देश के कई हिस्सों से फलों-सब्जियों के ऑर्डर आने लगे। चीनी सरकार का भी सहयोग मिला। इस तरह वह परिवार गरीबी से उबर गया! ऐसी कहानियां 'एक तीर से कई शिकार' करती हैं। वे तिब्बती परिवारों के मन में यह विचार पैदा करती हैं कि चीनी लोगों के साथ ऐसा मेलजोल उन्हें समृद्ध बनाएगा। सीसीपी और चीनी सरकार, जिनका किरदार कई सवालों के घेरे में है, को तिब्बतियों की हितैषी बताया जाता है। जिस पार्टी और सरकार ने तिब्बत पर अवैध कब्जा कर लिया, लोगों की स्वतंत्रता छीन ली, वे उनकी हितैषी कैसे हो सकती हैं? तिब्बत के गांवों में अपनी जड़ें जमाने के लिए चीन ने जो शिगूफा छोड़ा है, वह है- गरीबी उन्मूलन। वह हर महीने कुछ ग्रामीण महिलाओं को आगे लाकर उनके बारे में इस तरह प्रचार करता है कि 'पहले ये घोर गरीबी का सामना कर रही थीं ... जब से सरकार की मदद मिली है, इनके दिन ही फिर गए!' लोगों का देश हड़पकर उनकी गरीबी दूर करने का विचित्र फॉर्मूला चीन के पास है। वह दलाई लामा के उत्तराधिकार के संबंध में जो पैंतरा आजमा रहा है, उससे सावधान रहने और उसका पर्दाफाश करने की जरूरत है। तिब्बत में किया जा रहा सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव भारत के लिए भी चुनौती है।

About The Author: News Desk

News Desk Picture