होसपेट/दक्षिण भारत। गुरुवार को स्थानीय आदिनाथ जैन धर्मशाला में आयोजित प्रवचन कार्यक्रम में आचार्यश्री विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि आधुनिक युग में धर्म और संस्कृति की गौरवशाली परंपराओं को बचाना अत्यंत आवश्यक है।
इसके लिए घर-घर में अपने इतिहास और ज्ञान की अलख जगानी चाहिए वरना पश्चिम की आंधी, आधुनिक होने की अंतहीन होड़ तथा भोग-उपभोग के इस युग में स्वयं बचना और अपनी नई पीढ़ी को बचाना संभव नहीं होगा।
आज परिवार का ताना बाना टूट रहा है। पढ़ाई, नौकरी और विवाह के लिए लोग शहरों की ओर भाग रहे हैं। मां-बाप और बड़े-बुजुर्ग कहीं पीछे छूट रहे हैं। व्यसन भारतीय समाज का हिस्सा बन रहा है। वर्जनाएं टूट रही हैं।
फूहड़ता को सामाजिक मान्यता प्राप्त हो रही है। इन अनचाहे परिवर्तनों में मध्यम वर्ग पूरी तरह उलझ गया है। ऐसे में धर्म, ज्ञान, गुरु और सत्साहित्य ही आपको बचा सकता है, अन्यथा वह समय दूर नहीं जब भारतीय जनजीवन परेशान और दुःखी हो जाएगा।
जैनाचार्य ने कहा कि मर्यादाएं महत्वपूर्ण होती हैं। जो मर्यादाओं को पहचानते हैं और उनके अनुसार जीवनयापन करते हैं, वे जीवन को सुखी और उन्नत तो बनाते ही हैं, उसे सुरक्षित रखने में भी सफल हो जाते हैं, इसलिए यह आवश्यक है कि हम नीति-नियमों में पूरी निष्ठा रखें, स्वच्छंदी न बनें।
हित की बातों को सुनें और उन्हें मानें। सिद्धांतों से समझौते न करें। आधुनिक और पढ़े-लिखे होने का यह अर्थ नहीं है कि हम परंपराओं और सिद्धांतों की धज्जियां उड़ा दें। नीति-नियम बंधन नहीं, जीवन की सुचारू व्यवस्था है।
गणि पद्मविमलसागरजी ने कहा कि मित्र तो दुनिया में चाहे जितने मिल सकते हैं या बनाए जा सकते हैं लेकिन कल्याण मित्र का मिलना जीवन का सौभाग्य है। कल्याण मित्र वे होते हैं जो सिर्फ शरीर, धन या परिवार के सुख की ही नहीं, हमारे, मन, गुण, धर्म, अध्यात्म तथा जीवन के वास्तविक हितों की चिंता करते हैं।
जैन संघ के अध्यक्ष केसरीमल बागरेचा ने बताया कि शनिवार को सुबह आचार्यश्री के सान्निध्य में राजस्थान प्रवासी समाज के लोगों के लिए विशिष्ट कार्यक्रम का आयोजन किया गया है।