छत्तीसगढ़ सरकार ने पुलिस की कार्यप्रणाली में इस्तेमाल होने वाले उर्दू के मुश्किल शब्दों की जगह हिंदी के आसान शब्दों को शामिल करने का जो फैसला लिया है, उससे आम लोगों को काफी आसानी होगी। भाषा का सरलीकरण होना चाहिए। वह इतनी मुश्किल नहीं होनी चाहिए कि हर वाक्य को समझने के लिए शब्दकोश का सहारा लेना पड़े। पुलिस की कार्यप्रणाली में तो इस बात का खास ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि उसके पास अपनी समस्याएं लेकर आने वालों में से ज्यादातर आम लोग ही होते हैं। उक्त फैसले का यह कहकर विरोध करना न्यायसंगत नहीं है कि इसके जरिए उर्दू भाषा को हटाया जा रहा है। वास्तव में मुद्दा हिंदी या उर्दू का है ही नहीं, सिर्फ सरलीकरण का है। अगर कोई व्यक्ति पुलिस के पास फरियाद लेकर जाए और उससे दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कराए जाएं, तो उसे कम से कम यह पता होना चाहिए कि उनमें लिखा क्या है! वहां उर्दू, हिंदी या किसी भी भाषा के ऐसे शब्द नहीं होने चाहिएं, जिन्हें समझने में आम लोगों को कठिनाई हो। मुगल काल में जब कई शब्द पुलिस और अदालतों की कार्यप्रणाली में शामिल किए गए, तब भी ये आम लोगों के लिए बहुत मुश्किल थे। जहां तक उर्दू के साथ भेदभाव करने और उसे हटाने का सवाल है तो इन आरोपों में कोई दम नहीं है। आपने अभी जो पंक्तियां पढ़ी हैं, उनमें कई शब्द उर्दू के हैं। हिंदी और उर्दू के आसान शब्दों से ही आम लोगों की भाषा बनती है। अगर आज कोई व्यक्ति भाषागत 'शुद्धता' का सख्ती से पालन करते हुए हिंदी या उर्दू लिखे-बोले तो वह विद्वानों की भाषा जरूर होगी, आम लोगों की भाषा नहीं होगी। समय के साथ सरलीकरण और सुविधानुसार अन्य भाषाओं के शब्दों को शामिल करने से भाषा समृद्ध होती है।
पुलिस की कार्यप्रणाली में 'अदम तामील', 'इंद्राज', 'ख़यानत', 'दीगर', 'माल मशरूका', 'रोजनामचा', 'जरायम' समेत 100 से ज्यादा ऐसे शब्द हैं, जिनके अर्थ सामान्य व्यक्ति नहीं जानता। अगर इनकी जगह आसान और प्रचलित शब्द लिखे जाएं तो समझने में बहुत सुविधा होगी। बेशक आज पुलिस व्यवस्था को और ज्यादा जनसुलभ, पारदर्शी तथा संवादात्मक बनाने की जरूरत है। प्राय: पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर और अन्य दस्तावेजों की भाषा में उर्दू के मुश्किल शब्दों का ऐसा मिश्रण होता है, जिसे पढ़कर आम नागरिक उलझन में पड़ जाता है। ऐसे भी मामले सामने आए हैं, जब किसी ने पुलिस पर ही यह आरोप लगा दिया कि उसकी शिकायत कुछ और थी, पुलिस ने लिख दी कुछ और! भाषा के सरलीकरण से ऐसे विवाद दूर हो सकते हैं। इस पहल की जरूरत कई क्षेत्रों में है। उदाहरण के लिए, डॉक्टरी पर्चे और स्वास्थ्य जांच संबंधी रिपोर्टों की भाषा भी मुश्किल होती है। कुछ पर्चों पर हस्तलिपि बहुत अस्पष्ट होती है। मरीज को कैसे पता चलेगा कि उसे क्या बीमारी है, कौनसी दवाइयां बताई गई हैं और क्या सलाह दी गई है? चिकित्सा क्षेत्र बहुत व्यापक है। उसकी पूरी शब्दावली को समझना आम लोगों के लिए जरूरी नहीं है। वहां इतना काफी है कि पर्चे और जांच रिपोर्टों में स्पष्टता और सरलता हो। अगर संभव हो तो हिंदी या स्थानीय भाषा में भी कुछ जानकारी दी जाए। जिन देशों ने कानून, प्रशासन, चिकित्सा, इंजीनियरिंग समेत विभिन्न क्षेत्रों में 'अपनी भाषाओं' को प्राथमिकता दी, उन्होंने बहुत उन्नति की। जर्मनी, फ्रांस, इटली, चीन, जापान, रूस, द. कोरिया जैसे देशों ने अपनी भाषाओं में सरल अनुवाद किए। ये नागरिकों को अपनी भाषाओं में उच्च शिक्षा का विकल्प उपलब्ध कराते हैं। भारत में भी प्रयास जारी हैं। 'अपनी भाषा, स्पष्ट भाषा और सरल भाषा' - इस सूत्र को हर क्षेत्र में लागू करना चाहिए।