ईरान और इजराइल के बीच सैन्य संघर्ष खतरनाक मोड़ पर आ पहुंचा है। दोनों में से कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं है। अब तक ईरान को ज्यादा नुकसान हुआ है। उसके कई शीर्ष परमाणु वैज्ञानिक और सैन्य अधिकारी मारे गए हैं। इजराइल का पिछले कई वर्षों का रिकॉर्ड रहा है कि वह अपने दुश्मन के शीर्ष नेतृत्व पर न सिर्फ हमला करता है, बल्कि उसका खात्मा करने से भी नहीं हिचकता। उसने हमास, हिज्बुल्ला के शीर्ष कमांडरों का सफाया कर दिया। ऐसे में सवाल उठता है- क्या अब ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई उसके निशाने पर हैं? हालांकि ऐसी ख़बरें हैं कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इजराइल की इस योजना को वीटो कर दिया है। क्या जंग की आग ज्यादा फैलने की सूरत में भी इजराइल ट्रंप का आदेश मानेगा? अभी उसका पलड़ा भारी है, लेकिन ईरान के पास मिसाइलों का भारी जखीरा है। वह तेल अवीव समेत कई इलाकों पर हमले कर चुका है, जिससे इजराइली नागरिकों में अफरा-तफरी मची है। अगर इस टकराव के दौरान इजराइल को कोई बड़ा नुकसान हुआ या संघर्ष लंबा खिंचा तो प्रधानमंत्री नेतन्याहू ईरान के सर्वोच्च नेता पर हमला करने का आदेश देने से गुरेज़ नहीं करेंगे। वे इसके स्पष्ट संकेत दे चुके हैं। अगर इजराइल किसी तरह खामेनेई तक 'पहुंचने' में कामयाब रहा तो ईरान में अराजकता फैल सकती है। वहां आईआरजीसी और अन्य कट्टरपंथी समूह सत्ता पर कब्जा कर सकते हैं। यही नहीं, वे ईरान की जनता से सहानुभूति लेते हुए इजराइल पर हवाई हमले तेज कर सकते हैं। इससे मध्य पूर्व में भारी उथल-पुथल मच सकती है।
खामेनेई के जाने से ईरान की राजनीति में एक खालीपन पैदा हो सकता है। उसे भरने के लिए उनके बेटे या किसी अन्य मजहबी नेता को आगे लाया जा सकता है। इस प्रक्रिया में जितना समय लगेगा, इजराइल उसका फायदा उठाना चाहेगा। नेतन्याहू ईरान की जनता से पहले ही यह अपील कर चुके हैं कि 'दुष्ट और दमनकारी' शासन से अपनी आज़ादी के लिए खड़े हों। अगर ईरान की राजनीति में खालीपन पैदा होगा तो अमेरिका और इजराइल ऐसे संगठनों को समर्थन दे सकते हैं, जो 'बदलाव' के लिए आवाज बुलंद करें। याद करें, महसा अमीनी के साथ बर्बरता होने के बाद पूरे ईरान में खामेनेई के खिलाफ नारे गूंजने लगे थे। उस आंदोलन को बुरी तरह कुचला गया और सैकड़ों महिलाओं की मौत हुई थी। क्या उनके परिजन (खामेनेई के न रहने पर) दोबारा उसी व्यवस्था का समर्थन करेंगे, जो कट्टरपंथी रवैया अपनाए और महिलाओं पर सख्त पाबंदियां थोपे? ट्रंप और नेतन्याहू जानते हैं कि ईरान में ऐसे लोगों की अच्छी-खासी तादाद है, जो खामेनेई की नीतियों को पसंद नहीं करते और चाहते हैं कि देश में बदलाव आए। अमेरिका-इजराइल इस वर्ग के कुछ चर्चित चेहरों को आगे लाकर उन्हें सत्ता और व्यवस्था परिवर्तन का पैरोकार बना सकते हैं। इससे ईरानी समाज बंट जाएगा और कट्टरपंथी खेमे की पकड़ कमजोर होगी। हालांकि यह इतना आसान नहीं होगा। अगर इजराइल की काफी कोशिशों के बावजूद खामेनेई सुरक्षित रहे तो ईरान में उनकी स्थिति बहुत मजबूत हो सकती है। कट्टरपंथी समूह उन्हें किसी महानायक की तरह मानेंगे। इससे ईरान की आक्रामकता में और धार आएगी तथा इजराइल पर ज्यादा घातक हमले होंगे। ईरानी प्रॉक्सी समूह ज्यादा जोश के साथ मैदान में उतरेंगे और इजराइल के लिए चुनौतियां पैदा करेंगे। भविष्य में जो भी स्थिति पैदा हो, इतना तय है कि अगर सैन्य संघर्ष जल्दी नहीं रुका तो दोनों ही तरफ जान-माल का नुकसान बढ़ता जाएगा। ईरान को शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम के नाम पर अपने खतरनाक मंसूबे से पीछे हटना होगा। इसे इजराइल अपने अस्तित्व के लिए खतरा मानता है। अगर ईरान असल में शांति चाहता है तो उसे अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की निगरानी में ही परमाणु कार्यक्रम की अनुमति मिलनी चाहिए।