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शब्दों की मर्यादा न भूलें

भारतवासी अपनी सेनाओं के साथ एकजुट हैं

शब्दों की मर्यादा न भूलें
आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई सिर्फ सैनिकों की नहीं, हम सबकी है

भारत के वीर सैनिकों ने 'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत बहादुरी और बलिदान की जो मिसाल पेश की, उसके लिए देशवासी उनकी जय-जयकार कर रहे हैं। हमारे सैनिक इन तारीफों के हकदार हैं, लेकिन कुछ नेताओं ने जो बड़बोलापन दिखाया, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। यह कोई सियासी नूरा-कुश्ती नहीं है कि एक नेता दूसरे नेता को ललकारे, वह उसे कुछ खास शब्दों से नवाज़े और उसके समर्थक इस जुबानी जंग का लुत्फ उठाते हुए तालियां बजाएं। हमारी सेनाओं का देशवासी बहुत सम्मान करते हैं। एक सैनिक जब देश के दुश्मनों से भिड़ता है तो वह अपने प्राण देने से भी नहीं हिचकता। नेतागण उनके बारे में कोई बयान दें तो शब्दों की मर्यादा का खास ध्यान रखें। भारत का सैनिक किसी जाति और मजहब के लिए नहीं लड़ता। वह पूरे देश के लिए लड़ता है। उसके लिए समस्त देशवासी ही अपने होते हैं। जो लोग सैनिकों के बारे में भेदभावपूर्ण टिप्पणियां करते हैं, वे राष्ट्रीय एकता को कमजोर करने का प्रयास करते हैं। ऐसे लोगों को हतोत्साहित करना चाहिए। जो नेता अपने मुट्ठीभर समर्थकों के बीच इस किस्म की बयानबाजी कर तालियों से खुश हो जाते हैं, उन्हें मालूम होना चाहिए कि देशभर में उनकी भारी किरकिरी हो रही है। हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध, जैन, पारसी, यहूदी ... हम सभी भारत मां की संतानें हैं। देश को सुरक्षित और एकजुट रखना हम सबकी जिम्मेदारी है। हमारी सेनाओं में हर धर्म और जाति के लोग सेवाएं दे रहे हैं। उन सबमें महान बलिदानी पैदा हुए हैं। हमें तो इस विविधता को अपनी ताकत समझना चाहिए। भारत वह देश है जिसकी विविधता ऐसे सैनिक तैयार करने में सक्षम है, जो हर किस्म के वातावरण में तैनात हो सकते हैं, लड़ सकते हैं। हमारी सांस्कृतिक जड़ें बहुत गहरी हैं।

इस समय रूस-यूक्रेन युद्ध चल रहा है और दोनों ही देशों की सेनाएं सैनिकों की कमी से जूझ रही हैं। उनकी सरकारों द्वारा नौजवानों को सेना में जबरन भर्ती किए जाने की खबरें भी आई हैं। कई नौजवान इससे बचने के लिए बहाने ढूंढ़ रहे हैं। कई तो विदेशों में शरण ले चुके हैं। भारत में स्थिति बिल्कुल अलग है। यहां 'ऑपरेशन सिंदूर' का आगाज होते ही नौजवान केंद्र सरकार से कह रहे हैं कि हमें सेना में भर्ती कीजिए। सरहदी इलाकों में ग्रामीण कह रहे हैं कि अगर युद्ध छिड़ा तो हम कहीं नहीं जाएंगे, बल्कि यहीं रहकर सैनिकों का सहयोग करेंगे। जिस देश में सेना के साथ जनभावनाएं इतनी मजबूती से जुड़ी हों, वहां कुछ ओछी टीका-टिप्पणी करने वालों की चालें कभी कामयाब नहीं हो सकती हैं। जब भारतीय सैनिक बर्फीली वादी, जंगल, रेगिस्तान, समुद्र और आकाश में दुश्मन से लड़ता है तो वह सिर्फ भारतीय होता है। वह या तो तिरंगा फहराकर आता है या तिरंगे में लिपटकर आता है। बहुत दूर न जाएं, कारगिल युद्ध की कहानियां ही पढ़ लें। मेजर सोनम वांगचुक, कैप्टन विजयंत थापर, राइफलमैन संजय कुमार, कैप्टन अनुज नय्यर, कैप्टन विक्रम बत्रा, मेजर राजेश सिंह, कैप्टन हनीफुद्दीन जैसे योद्धा किसके लिए लड़े थे? ये भारत मां के लिए लड़े थे, उसकी करोड़ों संतानों के लिए लड़े थे। ये देश की अखंडता के लिए लड़े थे। दुश्मन की गोलाबारी और सख्त मौसमी हालात के बीच भारतीय सैनिक अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते जा रहे थे, तो इसके पीछे उनका अटूट देशप्रेम था। जिसके दिल में देशप्रेम की ज्वाला होती है, उसे मौत का खौफ नहीं होता। 'ऑपरेशन सिंदूर' भी ऐसी एक ज्वाला है। संकुचित सोच रखने वाले कुछ नेता अपनी भेदभावपूर्ण टिप्पणियों के जरिए वोटबैंक में बढ़ोतरी की उम्मीद लगाए बैठे हैं तो उन्हें निराशा ही हाथ लगेगी। भारतवासी अपनी सेनाओं के साथ एकजुट हैं। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई सिर्फ सैनिकों की नहीं, हम सबकी है।

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