नई दिल्ली/दक्षिण भारत। न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने बुधवार को भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) के तौर पर शपथ ली। राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें शपथ दिलाई। वे न्यायमूर्ति संजीव खन्ना का स्थान लेंगे, जो मंगलवार को सेवानिवृत्त हो गए। न्यायमूर्ति गवई ने हिंदी में शपथ ली।
उच्चतम न्यायालय की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार, न्यायमूर्ति गवई का कार्यकाल 23 नवंबर, 2025 तक रहेगा। 24 नवंबर, 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में जन्मे न्यायमूर्ति गवई 16 मार्च, 1985 को बार में शामिल हुए थे। उन्होंने साल 1987 से 1990 तक बंबई उच्च न्यायालय में स्वतंत्र रूप से वकालत की। साल 1990 के बाद, उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ के समक्ष वकालत की।
वे नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम और अमरावती विश्वविद्यालय के लिए स्थायी वकील रहे। इसके अलावा विभिन्न स्वायत्त निकायों और निगमों और विदर्भ क्षेत्र में विभिन्न नगर परिषदों के लिए नियमित रूप से पेश हुए।
उन्होंने अगस्त 1992 से जुलाई 1993 तक बंबई उच्च न्यायालय के नागपुर पीठ में सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त लोक अभियोजक के रूप में काम किया। उन्हें 17 जनवरी, 2000 को नागपुर पीठ के लिए सरकारी वकील और लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त किया गया। उन्हें 14 नवंबर, 2003 को उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया।
वे 12 नवंबर, 2005 को बंबई उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश बने। मुंबई में मुख्य पीठ के साथ नागपुर, औरंगाबाद और पणजी में सभी प्रकार के कार्यभार वाली पीठों की अध्यक्षता की। इसके बाद 24 मई, 2019 को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत हुए।
न्यायमूर्ति गवई पिछले छह वर्षों में संवैधानिक और प्रशासनिक कानून, सिविल कानून, आपराधिक कानून, वाणिज्यिक विवाद, मध्यस्थता कानून, बिजली कानून, शिक्षा मामले, पर्यावरण कानून आदि सहित विभिन्न विषयों से संबंधित मामलों वाली लगभग 700 पीठों का हिस्सा रहे हैं।
उन्होंने कानून के शासन को कायम रखने और नागरिकों के मौलिक अधिकारों, मानवाधिकारों और कानूनी अधिकारों की सुरक्षा से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर संविधान पीठ के निर्णयों सहित लगभग 300 निर्णय लिखे हैं।
न्यायमूर्ति गवई ने उलानबटार (मंगोलिया), न्यूयॉर्क (अमेरिका), कार्डिफ (ब्रिटेन) और नैरोबी (केन्या) में विभिन्न अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भाग लिया है। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय और हार्वर्ड विश्वविद्यालय सहित विभिन्न विश्वविद्यालयों और संगठनों में विभिन्न संवैधानिक और पर्यावरणीय मुद्दों पर व्याख्यान दिए हैं।