बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के श्रीरामपुरम स्थानक में विराजित आचार्यश्री अरिहंतसागर सूरीश्वरजीजी ने गुरुवार काे अपने प्रवचन में कहा कि श्रावक काे पुण्य प्राप्ति के लिए 18 पापस्थानाें का निषेध जरूरी है।
अच्छे, शुभ एवं जनहित के कार्य निस्वार्थ भाव से करने पर ही पुण्य उपार्जन का फल मिलता है। साधु-संताें की सेवा करने से उत्कृष्ट लाभ मिलता है।
आचार्यश्री ने कहा कि जिस प्रकार भगवान महावीर स्वामी ने चंडकाैशिक सर्प काे उत्कृष्ट भाव से क्षमा प्रदान की थी, उसी प्रकार हमें भी जीवन में क्षमा का भाव रखना चाहिए।
क्षमा के पांच प्रकार हैं- उपकारी, अपकारी, विपाक, वचन एवं स्वभाव क्षमा। क्षमा भाव से ही व्यक्ति का अहंकार कम हाेता है, अन्यथा व्यक्ति ईर्ष्या की आग में जलकर अपने कर्माें का पिटारा भर देता है एवं जन्म-जन्मातंर दुखी अवस्था में रहता है। अच्छे कर्म के लिए बुरे कार्याें से बाहर निकलना नितांत आवश्यक है।