प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तमिलनाडु में तमिल भाषा में चिकित्सा शिक्षा देने का जो आह्वान किया, उससे शिक्षा के क्षेत्र में मातृभाषा की भूमिका को लेकर व्यापक बहस शुरू हो गई है। यह स्वागत-योग्य है। हमारे देश में मातृभाषा में चिकित्सा और इंजीनियरिंग की पढ़ाई पर बातें तो बहुत हुईं, लेकिन उतना काम नहीं हुआ। पहले भी कई नेताओं, विद्वानों, विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उच्च शिक्षा के लिए मातृभाषा को माध्यम बनाने के लिए आवाज उठाई थी। वहीं, ऐसे बुद्धिजीवियों की भी कमी नहीं रही, जो इस मांग का यह कहते हुए मजाक उड़ाते थे कि ऐसा संभव नहीं है! क्यों नहीं है? उनके अनुसार, कई शब्द ऐसे हैं, जिनका हमारी भाषाओं में अनुवाद नहीं हो सकता और अंग्रेजी तो ज्ञान प्राप्त करने के लिए सर्वोच्च भाषा है। वास्तव में समस्या अंग्रेजी या कोई अन्य भाषा नहीं है। जो विद्यार्थी अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई करना चाहते हैं, उनके लिए इसकी व्यवस्था जरूर होनी चाहिए। इसके साथ ही उन विद्यार्थियों के लिए मातृभाषा में पढ़ाई का विकल्प होना चाहिए, जो इसके इच्छुक हैं। कई देशों में उनकी मातृभाषाओं में चिकित्सा शिक्षा देने का प्रयोग अत्यंत सफल रहा है। इसके लिए जापान का उदाहरण दिया जा सकता है। जापान के अस्पताल, चिकित्सा एवं शोध संस्थान उच्च कोटि के हैं। जापानी डॉक्टर बहुत अच्छे माने जाते हैं। उस देश में 100 साल से ज्यादा उम्र वाले हजारों लोग हैं। वहां चिकित्सा की पढ़ाई जापानी भाषा में होती है। इससे चिकित्सा शास्त्र के विद्यार्थियों, डॉक्टरों और मरीजों को कोई समस्या नहीं होती। इसके अलावा इटली, जर्मनी, फ्रांस, रूस और चीन में मातृभाषा में चिकित्सा की पढ़ाई होती है।
क्या इन देशों में चिकित्सा सुविधाओं की स्थिति अच्छी नहीं है? अगर ये देश अपनी भाषाओं में चिकित्सा की पढ़ाई करवा सकते हैं तो हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते? उच्च शिक्षा के लिए मातृभाषा का विकल्प उपलब्ध होगा तो इसका फायदा अनेक विद्यार्थियों को होगा। जो लोग इसका विरोध करते हैं, वे कहीं-न-कहीं इन युवाओं के लिए उच्च शिक्षा के द्वार खोलने का विरोध करते हैं। अब बड़ा सवाल पैदा होता है- क्या चिकित्सा शास्त्र में प्रयुक्त कठिन शब्दों का मातृभाषा में अनुवाद किया जा सकता है? इसका जवाब है- बिल्कुल किया जा सकता है। इसके लिए अनुवादकों, भाषाविदों और चिकित्सा विशेषज्ञों को मिलकर काम करना होगा। हमारी भाषाओं के शब्दभंडार बहुत समृद्ध हैं। अब तो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से काम और ज्यादा आसान हो सकता है। इसकी मदद से एक ही शब्द के कई अनुवाद किए जा सकते हैं और उनमें से जो सबसे सरल एवं उपयुक्त लगे, उसे लिया जा सकता है। हम नए शब्द बना सकते हैं। इस प्रक्रिया में समय जरूर लगेगा, लेकिन यह काम संभव है। इस तरह पढ़ाई कराने से सबसे ज्यादा फायदा उन ग्रामीण विद्यार्थियों को होगा, जो मेधावी हैं, लेकिन अंग्रेजी में पारंगत नहीं हैं। उनके लिए संबंधित विषय की जटिल अवधारणाओं को समझना आसान होगा। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा। वे अच्छा प्रदर्शन करेंगे। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि जो विद्यार्थी मातृभाषा में पढ़ाई कर डॉक्टर बनेंगे, वे मरीजों से बेहतर ढंग से संवाद कर सकेंगे, उनकी समस्याओं को अच्छी तरह से समझ सकेंगे और उन्हें स्वस्थ होने के लिए प्रोत्साहित करने में ज्यादा सक्षम होंगे। मातृभाषा में पाठ्यक्रम निर्माण, अध्यापन, प्रशिक्षण आदि से संबंधित कई चुनौतियां आ सकती हैं। उनसे निपटने के लिए हम अन्य देशों के अनुभवों से सीख सकते हैं। मातृभाषा में चिकित्सा शिक्षा उपलब्ध कराना एक दूरदर्शी कदम साबित होगा।