शिष्याें के पठन-पाठन के लिए जिम्मेदार होते हैं उपाध्याय: मलयप्रभसागर

आचार्य काे तीर्थंकर की उपमा दी गई है

उपाध्याय काे गणधर की उपमा दी गई है

बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के जिनकुशलसूरी जैन दादावाड़ी ट्रस्ट बसवनगुड़ी के तत्वावधान में विराजित मुनिश्री मलयप्रभसागरजी ने नवपद जी ओली के चतुर्थ दिवस के अपने प्रवचन में कहा कि उपाध्याय यानी शिष्याें के पठन-पाठन की जिम्मेदारी, विनय की प्रतिमूर्ति, निश्रावर्ती सभी साधुओं काे संयम मार्ग में स्थिर करने का महान कार्य करने वाले साधु भगवन्त हाेते हैं। 

आचार्य शासन काे चलाते हैं ताे उपाध्याय संघ काे मजबूती से आगमाें के पठन-पाठन से आगे बढ़ाते हैं। जिस वाणी काे तीर्थंकराें ने कहा है कि उस वाणी काे उपाध्याय पदधारी हमें सुनाते हैं। याेग्य आत्मा काे वात्सल्य, समझ, स्नेह देकर उसे धर्म में रत करना यह उनकी जिम्मेदारी है।
 
आचार्य काे तीर्थंकर की उपमा दी गई है ताे उपाध्याय काे गणधर की उपमा दी गई है। तीर्थंकर अर्थ का उपदेश देते हैं ताे आचार्य भी वही अर्थ का उपदेश देते हैं। मुमुक्षु काे दीक्षा आचार्य देते हैं ताे उपाध्याय उसे संभालते हैं। उपाध्याय पदधारी से हमें विनय गुण की याचना करनी चाहिए। उपाध्याय के 25 गुण हाेते हैं।

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