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सतर्कता से साजिश नाकाम

एटीएस और एसटीएफ के अधिकारियों ने अपना कर्तव्य निभाया है

सतर्कता से साजिश नाकाम
अब आरोपी के खिलाफ पुख्ता सबूत जुटाकर केस को मजबूत बनाएं

गुजरात के आतंकवाद रोधी दस्ते (एटीएस) और हरियाणा पुलिस के विशेष कार्यबल (एसटीएफ) की संयुक्त टीम ने अयोध्या में श्रीराम मंदिर पर हमले की साजिश को नाकाम कर सराहनीय कार्य किया है। हमारी एजेंसियां अपनी सतर्कता से ऐसी घातक साजिशों को कई बार नाकाम कर चुकी हैं। उनके बारे में आम जनता को पता ही नहीं होता। गुजरात एटीएस और हरियाणा एसटीएफ ने जिस युवक को गिरफ्तार किया है, उसके द्वारा एक खाली मकान में दो हथगोले छिपाए जाने की बात सामने आई है। अगर यह शख्स किसी तरह एजेंसियों की पैनी नजर से बच जाता और अयोध्या पहुंचकर कोई बड़ी वारदात कर देता तो भारी नुकसान हो सकता था। उक्त आरोपी की पहचान करने, उस तक पहुंचने और गिरफ्तार करने तक एटीएस और एसटीएफ के जिन अधिकारियों ने अपना कर्तव्य निभाया है, वे प्रशंसा के पात्र हैं। अधिकारियों की जिम्मेदारी यहां खत्म नहीं हो जाती, बल्कि बढ़ जाती है। अब आरोपी के खिलाफ पुख्ता सबूत जुटाकर केस को मजबूत बनाएं, ताकि अदालत में उसका कच्चा चिट्ठा खुल जाए और वह उचित दंड पाए। यह मामला इस किस्म की विषैली मानसिकता रखने वालों के लिए एक चेतावनी होना चाहिए कि किसी के उकसावे में आकर ऐसा निंदनीय कृत्य करने का मंसूबा बना रहे हैं तो यह न समझें कि आप पर किसी की नजर नहीं है या बच जाएंगे। देश की एजेंसियां हमेशा सतर्क और सजग हैं। जो इस देश को नुकसान पहुंचाने, सद्भाव को नष्ट करने के लिए 'दुष्ट ताकतों' का मोहरा बनेगा, उसे बख्शा नहीं जाएगा।

श्रीराम मंदिर उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद बनाया गया है। उस मामले से जुड़े जितने भी संशय थे, वे दूर किए जा चुके हैं। अब सबको इसे खुले दिल से स्वीकार करना चाहिए, क्योंकि सभी सबूत साफ-साफ कह चुके हैं कि यही श्रीराम जन्मभूमि है, पहले यहां मंदिर ही था। भारत के न्यायालयों में वर्षों इस मुकदमे पर सुनवाई हुई, कई-कई घंटों बहस हुई, एक-एक सबूत को बार-बार जांचा-परखा गया, हर आपत्ति का तर्क सहित निवारण किया गया, लिहाजा सच खुलकर सामने आ गया है। इसका सम्मान करना चाहिए। विदेशी आक्रांताओं ने अपने घृणित कार्यों से भारतीय समाज के सद्भाव को चोट पहुंचाने के लिए अनेक मंदिरों का अपमान किया था। वे यहां कोई जनकल्याण करने नहीं आए थे। वे लूटमार करने के इरादे से आए थे। यह कोई मनगढ़ंत बात नहीं है, बल्कि हकीकत है। कुछ कथित बुद्धिजीवियों ने उनका 'महिमामंडन' करते हुए यह झूठा प्रचार कर रखा है कि उन्होंने यहां आकर संस्कृति को समृद्ध किया, सुंदर इमारतें बनवाईं! जरा यह तो मालूम करें कि वे (आक्रांता) जिन देशों से आए थे, वहां स्थापत्य कला के क्षेत्र में कौनसा कीर्तिमान रच दिया था? उनके 'शासन काल' में यहां बनाई गईं इमारतों में हमारे ही पूर्वजों का खून-पसीना लगा था, इसलिए आक्रांताओं की वाहवाही तथ्यहीन एवं निराधार है। हां, पाकिस्तानी मीडिया उनकी शान में कसीदे खूब पढ़ता रहता है। वह उनकी फर्जी महानता की कहानियां सुनाकर उन्हें संयमी, न्यायप्रिय और मानवता का प्रेमी बताता रहता है। कुछ पाकिस्तानी 'उपदेशक' भी सोशल मीडिया पर बहुत सक्रिय हैं। वे स्थानीय मीडिया के सुर में सुर मिलाते हुए श्रीराम मंदिर के संबंध में दुष्प्रचार कर रहे हैं। वे पाकिस्तानी युवाओं को तो भ्रमित कर चुके हैं। वहीं, भारतीय युवाओं को भी भड़का रहे हैं। पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई उन युवाओं को इस्तेमाल कर सकती है, इसलिए ऐसे लोगों से दूर रहने में ही भलाई है। वे लाहौर, कराची, इस्लामाबाद, रावलपिंडी में कहीं बैठकर युवाओं को उल्टी पट्टी पढ़ा रहे हैं। जो उनके उकसावे में आकर यहां गलत मंसूबे बनाएगा, उसकी 'खातिरदारी' एटीएस और अन्य एजेंसियां अपने तरीके से करना जानती हैं।

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