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दोषरहित भगवान की भक्ति ही दोषमुक्त बना सकती है: आचार्य विमलसागरसूरी

तीर्थंकराें के साथ काेई शस्त्र-अस्त्र नहीं हाेते

दोषरहित भगवान की भक्ति ही दोषमुक्त बना सकती है: आचार्य विमलसागरसूरी
शुद्ध वीतराग स्वरूप हाेता है

बेंगलूरु/दक्षिण भारत। साेमवार काे स्थानीय जैन श्वेताम्बर धर्मशाला में सिद्धचक्र महाविधान में साधकाें काे मार्गदर्शन देते हुए जैनाचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने बताया कि भगवान भी अगर दाेषयुक्त हाें ताे उनमें और अपने में क्या फर्क रहेगा? पत्नी और परिवार रागात्मक भाव है, जबकि शास्त्र-अस्त्र द्वेषात्मक भाव है। दाेनाें ही संपूर्ण आत्म उन्नति में बाधक है। यही कारण है कि तीर्थंकराें के साथ उनकी पत्नी और परिवार नहीं हाेता। न ही उनकी पूजा हाेती है।

इसी तरह तीर्थंकराें के साथ काेई शस्त्र-अस्त्र नहीं हाेते। शुद्ध वीतराग स्वरूप हाेता है। वह अहिंसा, प्रेम, मैत्री और शांति का प्रतीक है। तीर्थंकर अरिहंत अपने साधना काल में किसी काे दुःख नहीं पहुंचते। किसी का बदला नहीं लेते। यह समत्व की निर्मल भूमिका हाेती है। वे अपकारी के प्रति भी उपकार की वर्षा करते हैं।

आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि भक्तियाेग सबसे सरल याेग है। इसमें अद्भुत शक्ति हाेती है। जाे निष्काम भाव से भगवान की भक्ति करते हैं, वे कभी निष्फल नहीं हाेते। जैनदर्शन के अनुसार सर्व दाेषरहित भगवान की भक्ति शांति और मुक्ति के लिये हाेती है। उसका मानना है कि सर्व दाेषरहित प्रभु ही हमें दाेष मुक्त बना सकते हैं। जैन परंपरा के पूजा-अनुष्ठान और आराधना का यही मर्म है। इसलिये किसी भी दाेषयुक्त शक्ति काे भगवान मानना जैन परंपरा में मान्य नहीं है। 

क्राेध, अभिमान, माया, लाेभ, राग, द्वेष आदि दाेषात्मक भावाें का अंश भी अगर किसी में विद्यमान हाें ताे वह आत्मा भगवान नहीं बन सकती। जैनदर्शन के अनुसार भगवान बनना किसी का एकाधिकार भी नहीं है। काेई भी आत्मा सभी दाेषाें-दुर्गुणाें काे दूर कर भगवान बन सकती है। आध्यत्मिक उन्नति का यह तार्किक स्वरूप है। 

अशाेक डाकलिया ने बताया कि महाविधान में अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र, तप, अक्षर मातृका, गुरु पादुका, नवग्रह, दस दिक्पाल, साेलह विद्यादेवी, चाैबीस यक्ष-यक्षिणी आदि दैविक तत्वाें के पूजन विधान हुए। 

अनेक गांवाें-शहराें के श्रद्धालुओं ने अनुष्ठान में भाग लिया। गणि पद्मविमलसागरजी और मुनि मंडल ने सामूहिक मंत्राेचारण किए। पंडित नरेंद्र और पंडित विजय ने मंडल और पूजन सामग्री का संयाेजन किया। सुनील एंड पार्टी ने भक्ति संगीत की मनाेहारी प्रस्तुतियां दीं। इस माैके पर जलाभिषेक, पुष्पांजलि, शांति कलश और महाआरती का आयाेजन हुआ।

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