Dakshin Bharat Rashtramat

पित्रोदा का नया शिगूफा

पित्रोदा एक काल्पनिक आदर्शवाद की पैरवी कर रहे हैं?

पित्रोदा का नया शिगूफा
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की नीतियों और गतिविधियों में 'भारतविरोध' साफ झलकता है

इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के प्रमुख सैम पित्रोदा ने काफी दिनों तक 'शांत' रहने के बाद नया शिगूफा छोड़ ही दिया। वह भी ऐसा कि कांग्रेस ने उनके शब्दों से किनारा कर लिया! पिछले साल लोकसभा चुनाव के दौरान पित्रोदा ने अपनी पार्टी की खूब किरकिरी कराई थी। ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने एक बार फिर 'मोर्चा' संभाल लिया है। पित्रोदा ने चीन के बारे में जो बयान दिया, उसका हकीकत से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है। यह कहना कि 'अब समय आ गया है कि सभी देश आपस में सहयोग करें, न कि टकराव रखें', एक अच्छी भावना जरूर है, लेकिन उस स्थिति में क्या किया जाए, जब हम तो मैत्री रखना चाहें और हमारा पड़ोसी झगड़ा करने के बहाने ढूंढ़ता रहे? भारत ने चीन के साथ संबंध सुधारने के लिए कितनी ही कोशिशें कर लीं, उनका नतीजा क्या रहा? चीन ने तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू के साथ कितना बड़ा विश्वासघात किया था? पित्रोदा नहीं जानते कि गलवान घाटी में क्या हुआ था? जब पूरी दुनिया में कोरोना महामारी के कारण हाहाकार मचा हुआ था, उस समय चीन हमारी जमीन हड़पने के लिए साजिशें रच रहा था। कौन भूल सकता है हमारे उन बलिदानियों को, जिन पर चीनी फौजियों ने नुकीले डंडों के साथ धोखे से हमला किया था? इसके बावजूद पित्रोदा कह रहे हैं कि 'हमारा दृष्टिकोण शुरू से ही टकराव वाला रहा है और इस रवैए से दुश्मन पैदा होते हैं'! यहां टकराव कौन पैदा कर रहा है? अरुणाचल प्रदेश को 'दक्षिण तिब्बत' कहकर उस पर अवैध दावा कौन करता है? भारतीय इलाकों का चीनी नामकरण करते हुए उनकी सूची कौन जारी करता है? नत्थी वीजा मामले के जरिए संबंधों को कौन बिगाड़ना चाहता है? अरुणाचल प्रदेश में विकास परियोजनाओं का विरोध कौन करता है?  

ऐसे सैकड़ों सवाल हैं, जिनका जवाब एक है- चीन। सैम पित्रोदा एक काल्पनिक आदर्शवाद की पैरवी करते हुए यह कहने को स्वतंत्र हैं कि 'यह मानना बंद करना होगा कि चीन पहले दिन से ही दुश्मन है', इससे हकीकत तो नहीं बदल जाएगी। वास्तव में चीन का सत्तारूढ़ वर्ग अत्यंत धूर्त मानसिकता रखता है। उसने पहले तो 'हिंदी-चीनी, भाई-भाई' का नारा लगाते हुए हमारी पीठ में छुरा घोंपा। उसके बाद पाकिस्तान जैसे देश को वित्तीय एवं सैन्य सहायता देकर भारत के लिए चुनौतियां खड़ी कीं। चीन हमारे पड़ोसी देशों में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है। नेपाल, मालदीव जैसे देश, जिनकी अर्थव्यवस्था काफी हद तक भारत पर निर्भर करती है, वे भी चीन के प्रभाव में आकर हमें आंखें दिखाते रहते हैं। अगर चीन इतना ही 'मानवता का प्रेमी' है तो पीएलए ने तवांग सेक्टर में घुसपैठ की कोशिश क्यों की थी? वहां भारतीय सैनिकों ने चीनी फौजियों का 'उचित रीति से स्वागत-सत्कार' किया था। अब सवाल है- चीन के साथ कैसा व्यवहार होना चाहिए? हमें यहां अतीत के अनुभवों को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ना होगा। भले ही चीन के आम नागरिकों के मन में भारत के प्रति वैसी कटुता नहीं है, जैसी पाकिस्तानियों में देखने को मिलती है, लेकिन चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की नीतियों और गतिविधियों में 'भारतविरोध' साफ झलकता है। चीन एशिया समेत पूरी दुनिया में अपना दबदबा चाहता है। उसका प्रचार तंत्र बड़ा सुदृढ़ है, जो दर्जनों भाषाओं में दिन-रात यह बताता रहता है कि 'चीन में खुशहाली है, यहां कोई बड़ी समस्या नहीं है, यह निवेश करने के लिए सबसे अनुकूल देश है, इसकी फौज अजेय है'! चीनी मीडिया में सरकारी भ्रष्टाचार, मनमानी, अत्याचार, बेरोजगारी, महंगाई, युवाओं में निराशा, अकेलापन आदि के बारे में न के बराबर जानकारी मिलती है। कोई उद्योगपति हो या सेलिब्रिटी, उसने सरकार की जरा-सी आलोचना कर दी तो उसे 'गायब' कर दिया जाता है। चीन की चुनौती का ज्यादा दृढ़ता से सामना करने के लिए बहुत जरूरी है कि भारत आर्थिक दृष्टि से खूब मजबूत बने, तकनीकी विकास को बढ़ावा मिले, सुरक्षा बलों के पास अत्याधुनिक साजो-सामान हो और देशवासियों में एकता हो। फिर भी चीन अपनी हरकतों से बाज़ न आए तो ड्रैगन को नकेल डालने का फॉर्मूला लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह बहुत पहले बता चुके हैं। सैम पित्रोदा जो कुछ कह रहे हैं, उस पर अमल किया तो चीन की उद्दंडता बहुत बढ़ जाएगी।

About The Author: News Desk

News Desk Picture