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संगठित समाज ही करेंगे विकास: आचार्य विमलसागरसूरी

इतिहास साक्षी है कि संगठन के टूटने से हम कमजाेर हुए

संगठित समाज ही करेंगे विकास: आचार्य विमलसागरसूरी
विघटित मानसिकता मनाेराेग जैसी है

शिवमाेग्गा/दक्षिण भारत। स्थानीय पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ के तत्वावधान में पार्श्व भवन में बुधवार काे तीनाें संप्रदायाें की संयुक्त धर्मसभा काे संबाेधित करते हुए जैनाचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि इतिहास साक्षी है कि संगठन के टूटने से हम कमजाेर हुए और इसका फायदा हमेशा दुश्मनाें काे मिला। संगठन शक्ति, सामर्थ्य, बुद्धि, निश्चिंतता और निर्भयता सब कुछ देता है। 

संतश्री ने उदाहरण देते हुए कहा कि भले ही शेर जंगल का राजा हाेता है, पर यदि अकेला हाे ताे अवसर पाकर जंगली कुत्ते भी उसका शिकार कर लेते हैं। इसलिए कभी किसी काे अपने मन में यह भ्रम नहीं पालना चाहिए कि मैं अकेला ही सबकुछ कर लूंगा, मुझे किसी की जरूरत नहीं है। ऐसे लाेगाें काे पछताने के अलावा कुछ नहीं मिलता। अलग या अकेले रहने से कुछ नहीं हाेता, सबके साथ हिलमिलकर रहने से सब-कुछ हाे सकता है।

आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि विघटित मानसिकता मनाेराेग जैसी है। यह भीतर ही भीतर दीमक की तरह हमें समाप्त कर देती है। संगठन में शक्ति है, संगठन के अनेक सुख हैं, जबकि विघटन के अनेक दुःख। 

प्रतिस्पर्धा से भरे आधुनिक युग में जाे विघटन के विचार करता है, वह अपने अहित का इंतजाम कर रहा है। काेई कितने भी धनवान या बुद्धिशाली हाें, आने वाले युग में सिर्फ संगठित समाज ही विकास करेंगे और सुरक्षित रहेंगे। जाे विघटित रहेंगे, वे सामर्थ्यवान हाेते हुए भी समाप्त हाे जाएंगें। 

बुधवार काे साधुओं ने केशलुंचन किया। गणि पद्मविमलसागरजी ने बताया कि चार दिन के प्रवास में शिवमाेग्गा में नाै कार्यक्रमाें का आयाेजन किया गया है।

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