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परीक्षा को बनाएं उत्सव

कई बच्चे आत्मविश्वास के मामले में अस्थिरता के शिकार हो जाते हैं

परीक्षा को बनाएं उत्सव
अच्छे नंबर आए हों तो कुछ चीजें आसान हो जाती हैं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘परीक्षा पे चर्चा’ कार्यक्रम में 'पढ़ाई' और 'प्रदर्शन' के बारे में जिन बिंदुओं का उल्लेख किया, उन्हें सुनकर बहुत लोगों को महसूस हुआ होगा कि अगर उन्हें पढ़ाई के दिनों में ये बातें किसी ने बताई होतीं तो जीवन की दिशा कुछ और ही होती। प्रधानमंत्री ने सत्य कहा कि विद्यार्थी खुद को चुनौती दें, लेकिन परीक्षा का दबाव न लें। अक्सर ऐसा होता है कि कोई विद्यार्थी सालभर बहुत मेहनत करता है और जैसे-जैसे परीक्षा की तारीख नजदीक आती है, वह दबाव महसूस करने लगता है। उसे लगता है कि 'अन्य सहपाठियों की तैयारी तो बहुत अच्छी है, जबकि मैं पीछे रह गया हूं।' कई बच्चे आत्मविश्वास के मामले में अस्थिरता के शिकार हो जाते हैं। वे पहले किसी प्रश्न का सही उत्तर लिख देते हैं। फिर उन्हें महसूस होता है कि शायद इस उत्तर में कोई गड़बड़ हो गई। इसके बाद वे दोबारा उत्तर लिखते हैं और गलती कर देते हैं। जब परीक्षा के नतीजे घोषित होते हैं तो कई विद्यार्थी तनावग्रस्त हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि किसी विषय में कम नंबर आ गए तो उनका भविष्य उज्ज्वल नहीं होगा। इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि अच्छे नंबर आए हों तो कुछ चीजें आसान हो जाती हैं, लेकिन ये न तो उज्ज्वल भविष्य की गारंटी हैं और न ही कम नंबर आने का यह मतलब है कि अब आप जीवन में आगे नहीं बढ़ सकते। ऐसे बहुत लोग हैं, जो पढ़ाई-लिखाई में औसत थे, लेकिन जीवन में बहुत सफल रहे। हमारे देश में कितने ही उद्योगपति, वैज्ञानिक, राजनेता, अधिकारी ऐसे मिल जाएंगे, जिन्होंने अपनी मेहनत, सूझबूझ और कौशल के साथ वह मुकाम हासिल किया, जिसकी अपने विद्यार्थी जीवन में कल्पना नहीं की थी।

प्रधानमंत्री ने शिक्षकों से यह कहकर कई विद्यार्थियों के मन की बात साझा की है कि एक बच्चे की दूसरे से तुलना न करें। हर विद्यार्थी में अलग खूबियां होती हैं। उसकी किसी दूसरे विद्यार्थी से तुलना करना उचित नहीं है, खासकर सबके सामने! इससे उसे बुरा लगता है और हीनभावना पैदा होती है। कई शिक्षक, जिनकी मंशा विद्यार्थी के प्रदर्शन में सुधार लाने की होती है, पूरी कक्षा के सामने यह कहकर बच्चे का मनोबल तोड़ देते हैं- 'तुम्हें तो कुछ आता ही नहीं, उस बच्चे को देखो, वैसा बनने की कोशिश करो ... क्यों माता-पिता के पैसे बर्बाद कर रहे हो, तुम उतने नंबर लेकर नहीं आ सकते ... तुम्हारा तो बेड़ा ही पार है, इस बच्चे से कुछ सीखो, अन्यथा अगले साल यहीं बैठे नजर आओगे ... तुम्हें कितना ही पढ़ा दूं, नतीजा तो वही आएगा, जो हर साल आता है ...!' अगर शिक्षक द्वारा काफी कोशिशों के बावजूद विद्यार्थी के प्रदर्शन में खास सुधार होता नहीं दिख रहा है तो उसकी वजहों का पता लगाना चाहिए। उसे मार्गदर्शन के लिए स्नेह के साथ समझाना चाहिए। पूरी कक्षा या अन्य विद्यार्थियों के सामने डांट-फटकार लगाने से सुधार की संभावना कम ही होगी। हाल में सोशल मीडिया पर एक वीडियो बहुत चर्चित हुआ था, जिसमें दो स्कूलों में पढ़ाई के तौर-तरीके दिखाए गए थे। पहले, यूरोप के किसी स्कूल में एक शिक्षिका छोटी कक्षाओं के बच्चों को खेल-खेल में पढ़ना सिखाती हैं। कक्षा के सभी विद्यार्थियों के साथ उनका व्यवहार उस बड़ी बहन जैसा था, जो उन्हें पढ़ाई में व्यस्त तो रखती हैं, लेकिन उनके मिज़ाज में कोई सख्ती नहीं होती। इसके बाद, दूसरे दृश्य में दक्षिण एशिया का एक स्कूल दिखाया जाता है। उसमें एक शिक्षक अपने हाथ में मोटा-सा डंडा लेकर विद्यार्थियों की खूब पिटाई करते हैं। इससे सभी बच्चे बहुत डरे हुए रहते हैं। क्या ऐसा माहौल पढ़ाई के लिए उचित है? हर साल कई बच्चे शिक्षकों से पिटने के बाद गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं। कुछ तो दम तोड़ देते हैं। पिटाई करते हुए पढ़ाना बहुत गलत तरीका है। इससे हमेशा बचना चाहिए।

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