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महिलाओं की सुरक्षा को दें प्राथमिकता

कपड़ों के नाप लेने का काम अनिवार्यत: महिला कर्मचारियों द्वारा किया जाना चाहिए

महिलाओं की सुरक्षा को दें प्राथमिकता
यहां महिला कर्मचारियों को नियुक्त करने में क्या समस्या है? 

उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग ने महिलाओं की निजता और सुरक्षा के संबंध में जो प्रस्ताव दिया है, उसके सुझावों पर चर्चा होनी चाहिए। हो सकता है कि इनमें से कुछ सुझाव हू-ब-हू लागू न किए जा सकें, लेकिन उनमें परिस्थितियों के अनुसार संशोधन किए जा सकते हैं। सैलून, बुटीक और ऐसे प्रतिष्ठान, जहां मुख्य ग्राहक महिलाएं हों, वहां तो अनिवार्यत: महिला कर्मचारियों को नियुक्त करना चाहिए। जब हर क्षेत्र में महिलाएं कार्यरत हैं, नेतृत्वकर्ता की भूमिका में भी हैं, तो यहां महिला कर्मचारियों को नियुक्त करने में क्या समस्या है? 

उदाहरण के लिए, महिलाओं के अंत:वस्त्रों से संबंधित कई दुकानों पर पुरुष कर्मचारी तैनात मिलते हैं। अगर वहां महिला कर्मचारी हों तो (महिला) ग्राहकों के लिए प्रॉडक्ट खरीदने, पूछताछ करने आदि में बहुत आसानी होगी। इसका मतलब यह नहीं है कि पुरुष कर्मचारियों को कहीं भी नियुक्त नहीं करना चाहिए। उन्हें दूसरी जिम्मेदारियां दी जा सकती हैं, लेकिन जहां कोई महिला ग्राहक अपनी पसंद का प्रॉडक्ट लेना चाहे, वहां महिला कर्मचारी तैनात हो तो वह बेझिझक खरीदारी कर सकती है। 

जिस सैलून में महिला ग्राहक केश कटवाने के लिए जाएं, वहां यह काम महिला कर्मचारी करेंगी तो महिलाएं ज्यादा सहज महसूस करेंगी। इसी तरह जहां महिलाओं के कपड़े सिले जाते हैं, वहां नाप लेने का काम अनिवार्यत: महिला कर्मचारियों द्वारा किया जाना चाहिए। 

पिछले कुछ सालों में पुलिस के पास ऐसे कई मामले आए हैं, जिनमें महिला ग्राहकों ने नाप लिए जाने के दौरान अभद्रता करने के आरोप लगाए हैं। ये आरोप कितने सच्चे हैं, यह तो न्यायालय तय करेगा, लेकिन सरकारों को ऐसी व्यवस्था का निर्माण करना चाहिए, जिससे इस किस्म के विवाद पैदा ही न हों। अगर महिला कर्मचारी महिला ग्राहकों के कपड़ों का नाप लें तो बहुत सुविधाजनक भी रहेगा।

इन सुझावों पर कई लोग यह 'तर्क' देंगे कि 'कैसी बातें कर रहे हैं', 'अमेरिका, यूरोप ... कहां से कहां चले गए, जबकि हम यहीं अटके हैं'! वास्तव में हमारी सरकारों को ऐसे नियम बनाने और लागू करने चाहिएं, जो यहां की सामाजिक आवश्यकताएं पूरी करें और जिनमें परिवेश और संस्कृति के पहलू को भी ध्यान में रखा जाए। अमेरिका और यूरोप की सभी बातें कॉपी कर यहां लागू नहीं की जा सकतीं। 

भारत में अक्सर ऐसे मामलों से जुड़ीं खबरें पढ़ने को मिलती हैं, जिनमें महिलाओं से अभद्रता और अशालीन हरकतें करने के आरोप लगाए जाते हैं। इंटरनेट पर सर्च करेंगे तो ऐसे शीर्षक के साथ दर्जनों खबरें मिल जाएंगी ... 'नाप लेने के बहाने की छेड़छाड़', 'महिलाओं को मेहंदी लगाने वाले शख्स पर ... का आरोप', 'जिम ट्रेनर पर छेड़छाड़ का आरोप'। 

इन आरोपों की पृष्ठभूमि जांच का विषय हो सकती है। किसी व्यक्ति को उसी स्थिति में दोषी कहा जा सकता है, जब न्यायालय इस बात का निर्णय कर दे। यह भी सत्य है कि इन स्थानों पर तैनात ज्यादातर पुरुष कर्मचारी बहुत मेहनत और ईमानदारी से काम करते हैं। लिहाजा एक ही बात सभी कर्मचारियों के साथ जोड़ देना न्यायोचित नहीं है। इसके साथ हमें महिला ग्राहकों के पक्ष को भी देखना होगा। क्या यह नहीं होना चाहिए कि उन्हें खरीदारी / सेवा क्रय करते समय ऐसा माहौल मिले, जिसमें वे ज्यादा सहज महसूस करें? 

इसे एक और उदाहरण से समझा जा सकता है। कुछ साल पहले भारत के एक स्टेडियम में महिलाओं के प्रवेश के दौरान उनके पर्स की जांच पुरुष पुलिसकर्मी द्वारा किए जाने का मुद्दा सोशल मीडिया पर चर्चा में रहा था। उनके पर्स में कोई भी संदिग्ध चीज नहीं मिली, पुलिसकर्मी का बर्ताव भी ठीक था, लेकिन उन महिलाओं ने (बाद में) अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि पर्स में उनके निजी इस्तेमाल की कुछ चीजें थीं। 

जब पुलिसकर्मी ने जांच के दौरान उन चीजों को सबके सामने बाहर निकाला तो महिलाओं को झिझक महसूस हुई। अगर यही काम किसी महिला पुलिसकर्मी द्वारा किया जाता तो कोई दिक्कत ही नहीं होती। इन सभी बिंदुओं को ध्यान में रखकर ऐसे नियम बनाने चाहिएं, जिनकी आज आवश्यकता हो।

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