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हकीकत से परे भुखमरी सूचकांक

सोशल मीडिया के दौर में लोग गलत दावों पर आंखें मूंदकर भरोसा कर लेते हैं

हकीकत से परे भुखमरी सूचकांक
भारत की छवि खराब करने को लेकर कई संगठन काम कर रहे हैं

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भुखमरी सूचकांक का जिक्र करते हुए सत्य कहा है कि कुछ ताकतें भारत की ‘खराब छवि’ पेश करने की कोशिश कर रही हैं। यह सिलसिला बहुत पुराना है। आज़ादी से पहले भी ऐसी ताकतें सक्रिय थीं, जिन्होंने दुनियाभर में हमारी बहुत गलत छवि पेश की थी। 

यह जानकर हैरत होती है कि सोशल मीडिया के दौर में लोग उन गलत दावों पर आंखें मूंदकर भरोसा कर लेते हैं। स्वामी विवेकानंद वर्ष 1893 में जब विश्व धर्म संसद को संबोधित करने के लिए अमेरिका गए तो उनका सामना भी ऐसे लोगों से हुआ था, जिनके दिलो-दिमाग में भारत के बारे में गलत बातें भरी गई थीं। उन्होंने यथासंभव उनका मार्गदर्शन किया और अपने पत्रों में इस पर खूब लिखा कि भारत के बारे में पश्चिमी देशों की जानकारी कितनी भ्रामक है! 

उस ज़माने में अमेरिका समेत पश्चिम के कई देशों में ऐसी भ्रांतियां थीं कि भारत में जिन महिलाओं के पति की मृत्यु हो जाती है, उन्हें जीने का अधिकार नहीं होता, लोग अपने छोटे बच्चों को रथयात्राओं के पहियों के नीचे फेंक देते हैं, भारत की हर गली में शेर-चीते घूमते हैं ... यही नहीं, हमारे आध्यात्मिक ग्रंथों के बारे में बहुत भ्रामक बातें फैलाई गईं। धीरे-धीरे उन लोगों ने जाना कि इन बातों में कोई सच्चाई नहीं है। 

अब जो भ्रांतियां फैलाई जा रही हैं, वे कुछ यूं हैं - भारत में लोगों के पास पर्याप्त अन्न नहीं है ... यहां शौचालय सिर्फ अमीरों के घरों में हैं ... भारत में ज्यादातर लोगों के पास अपने घर नहीं हैं, इसलिए वे रात को फुटपाथों पर सोते हैं ... यहां लोगों को अंग्रेज़ी नहीं आती ... यहां वैज्ञानिक प्रगति नहीं हुई है!  

ये भ्रांतियां उस दौर में प्रचलित हैं, जब भारत के खेतों में खूब फसलें हो रही हैं, घर-घर में शौचालय बन गए हैं, लोगों के बैंक खाते खुल गए, डिजिटल पेमेंट में तो हम हर साल अपना ही रिकॉर्ड तोड़ रहे हैं, हमारे विश्वविद्यालयों से डिग्री लेकर निकले लोग बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सीईओ बन गए और इसरो के वैज्ञानिकों ने अपनी प्रतिभा के दम पर अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में कई उपलब्धियां हासिल कर ली हैं। 

वास्तव में भारत की छवि खराब करने को लेकर दुनियाभर में कई संगठन काम कर रहे हैं। वे साजिशन लोगों के मन में यह बात बैठाना चाहते हैं कि भारत गरीबी, भ्रष्टाचार, अशिक्षा, भुखमरी, अंधविश्वास समेत कई समस्याओं से ग्रस्त ऐसा देश है, जिसमें सुधार की संभावना बहुत कम है। इसके लिए कई कथित थिंक टैंक बनाए गए हैं, जिनका काम यह है कि वे समय-समय पर ऐसे शिगूफे छोड़ते रहें, जिनमें इस बात का दावा किया जाए कि भारत में असहिष्णुता बहुत बढ़ गई है, लोगों में सद्भाव की कमी है, यहां लोग नाउम्मीद हो चुके हैं ...! 

हर साल ऐसी कथित रिपोर्टें सोशल मीडिया पर खूब वायरल होती हैं। अगर हाल में आए भुखमरी सूचकांक को ही देखें तो इससे साफ पता चलता है कि जिन लोगों ने रिपोर्ट तैयार की, उन्हें भारत के बारे में आधी-अधूरी जानकारी रही होगी। इसमें भारत को श्रीलंका, नेपाल, म्यांमार और बांग्लादेश से भी पीछे बताया गया है! ये वे देश हैं, जिनकी अर्थव्यवस्थाएं भारत के सहयोग से चल रही हैं। 

बड़ा सवाल तो यह भी है कि रिपोर्ट तैयार करने से पहले इनके शोधकर्ता वास्तव में लोगों से मिले हैं या वॉट्सऐप पर आई किसी फोटो को देखकर धारणा बना ली? अगर ऐसा कोई शोधकर्ता भारत के दूर-दराज के गांव में जाकर किसी मज़दूर से भी पूछताछ करेगा तो वह उसे बिना भोजन कराए नहीं जाने देगा। गांवों में ऐसा हो ही नहीं सकता कि मेहमान आए और लोग उसे कुछ न खिलाएं। 

भारत सरकार कोरोना महामारी से लेकर आज तक करोड़ों परिवारों को हर महीने मुफ्त राशन उपलब्ध करवा रही है। इसके बावजूद कुछ 'बुद्धिजीवियों' को यहां श्रीलंका, नेपाल, म्यांमार और बांग्लादेश से भी ज्यादा भुखमरी नजर आती है तो उन्हें सही अध्ययन करने के साथ अपने रवैए में निष्पक्षता लाने की जरूरत है।

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