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योग ने इस गांव की गरीबी कर दी दूर!

इस गांव को देखने के लिए देश-विदेश से लोग आ रहे हैं

योग ने इस गांव की गरीबी कर दी दूर!
Photo: PixaBay

हमारे ऋषियों-मुनियों के इस दिव्य ज्ञान का उपयोग हम अपने गांवों को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने के लिए कब करेंगे? 

बेंगलूरु/दक्षिण भारत। योग शरीर को निरोग रखने के साथ ही गरीबी निवारण में बहुत असरदार साबित हो सकता है। जी हां, एक गांव में ऐसा प्रयोग किया गया, जो बहुत सफल रहा है। पड़ोसी देश चीन, जिसका सरकारी रवैया तो भारत के खिलाफ रहा है, लेकिन वह अपने फायदे के लिए योग का भरपूर इस्तेमाल कर रहा है। 

आज उसके एक गांव को देखने के लिए देश-विदेश से लोग आ रहे हैं, जिससे ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा मिल रहा है। इस गांव को योगियों का गांव कहा जाने लगा है। योग भारत से चीन पहुंचा, जहां दूर-दराज के गांवों के लोग इसकी शक्ति से स्वस्थ और संपन्न हो रहे हैं। अगर हम भी योग के लिए समर्पण दिखाएं तो बीमारी, बेरोजगारी, गरीबी समेत कई समस्याएं दूर कर सकते हैं।

उत्तरी चीन के एक इस पहाड़ी गांव में चाहे धूप हो या बारिश, लोगों का एक समूह हर दिन योग का अभ्यास करने के लिए चौराहे पर इकट्ठा होता है। यह हेबेई प्रांत के गांव युगोलियांग का एक दृश्य है।

लगातार योगाभ्यास के माध्यम से इन ग्रामीणों ने न केवल अपना शारीरिक लचीलापन और मनोबल बढ़ाया है, बल्कि गरीबी पर काबू पाने और समृद्धि पाने का एक अनूठा मार्ग भी खोज लिया है।

युगोलियांग गांव दूर-दराज के इलाके में स्थित है और यहां केवल 100 स्थायी निवासी हैं, जिनमें कई बुजुर्ग हैं। पहले यहां लोग काफी कमजोर थे। वे अक्सर बीमार रहते थे। एक बार गरीबी उन्मूलन अधिकारी लू वेनझेन ने उन्हें योगाभ्यास के बारे में जानकारी दी। शुरुआत में, लू ने यहां के खेतों में उगाए गए आलू को सोशल मीडिया पर बेचने में निवासियों की मदद की। 

चूंकि गरीबी दूर करने के लिए एक अभिनव तरीके की जरूरत थी। ऐसे में लू को एहसास हुआ कि योग इसका एक हिस्सा हो सकता है। कुछ समय तक योग का अभ्यास करने के बाद यहां के निवासियों ने स्वयं को अधिक ऊर्जावान और अपने खेती के कार्यों में अधिक कुशल पाया। इससे उन्हें कई फायदे भी हुए।

उनके स्वास्थ्य में सुधार के कारण चिकित्सा खर्च कम हो गया। गांव की बढ़ती प्रतिष्ठा के कारण पर्यटक यहां आने लगे हैं। वे लोगों से सामान खरीदते हैं, जिससे ग्रामीणों की कमाई बढ़ रही है। साल 2017 में इसे 'योग गांव' का खिताब दिया गया था। 

हमारे ऋषियों-मुनियों के इस दिव्य ज्ञान का उपयोग हम अपने गांवों को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने के लिए कब करेंगे? 

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