दृढ़ता दिखाएं, भरोसा रखें

मामले को सनसनीखेज बनाने से बचा जाए

देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी सिर्फ सुरक्षा बलों और जांच एजेंसियों की नहीं, बल्कि हर नागरिक की है

हाल में दिल्ली और अहमदाबाद के कई स्कूलों को 'बम से उड़ाने की धमकियां' मिलना अत्यंत गंभीर मामला है। इन स्कूलों को अलग-अलग समय पर मिलीं धमकियों में कई समानताएं भी थीं। सबको ईमेल भेजे गए, जिनमें यह दावा किया गया कि स्कूल परिसर में विस्फोटक लगाए गए हैं। इसके बाद स्कूल प्रबंधन ने पुलिस को सूचना दी और अधिकारियों ने मौके पर पहुंचकर तलाशी अभियान चलाया। किसी भी स्कूल में ऐसी कोई चीज नहीं मिली, जिससे सुरक्षा को खतरा हो। पुलिस ने पाया कि ये ईमेल फर्जी थे। हालांकि जब इतनी बड़ी संख्या में ईमेल मिले और उनमें बड़े स्तर पर वारदात को अंजाम देने की डींगें हांकी गईं तो उससे प्रतीत होता था कि ये कोरी धमकियां हैं। यह मानना होगा कि पुलिस ने इन सभी मामलों में बहुत फुर्ती दिखाई। अधिकारियों ने विद्यार्थियों और शिक्षकों के जीवन की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ऐसा हर साधन आजमाया, जिससे सच्चाई सामने लाई जा सके। उन्होंने कुछ ही घंटों में खुलासा भी कर दिया कि ये ईमेल फर्जी थे। इनके पीछे देश या विदेश में बैठे खुराफाती या आतंकी तत्त्व हो सकते हैं, जिन्होंने अपनी पहचान छिपाकर लोगों में दहशत फैलाने के लिए स्कूलों को ईमेल भेजे थे। इन सभी मामलों पर गौर करें तो कुछ ऐसे बिंदु सामने आते हैं, जिनसे ईमेल भेजने वालों के इरादों का साफ पता चलता है। यह परंपरागत तरीके से किया गया 'आतंकी हमला' नहीं था, लेकिन 'निशाने' पर सभी लोग थे। जब किसी स्कूल को ईमेल मिला होगा तो उसके कर्मचारियों में हड़कंप मच गया होगा। उन्होंने आनन-फानन में पुलिस को सूचित किया होगा। उसके बाद मामला सोशल मीडिया पर आ गया। देखते ही देखते हर कहीं इसी बात की चर्चा होने लगी।

खुराफातियों/आतंकवादियों का एक पैसा खर्च नहीं हुआ, लेकिन वे दहशत फैलाने में कामयाब रहे। सोशल मीडिया ने उनको भरपूर प्रचार दिया। यही तो वे चाहते थे। जनता को डराना, आतंकित करना, सुरक्षा बलों और एजेंसियों को कमजोर दिखाना ... ये सब आतंकवादियों के षड्यंत्र का हिस्सा हैं। उन्हें प्रचार देने का मतलब है- उनकी ताकत बढ़ाना। उक्त ईमेल्स को भेजने के पीछे जो भी लोग हैं, जब उन्होंने सोशल मीडिया पर यह देखा होगा कि उनकी धमकियां ट्रेंड कर रही हैं, उनसे संबंधित पोस्ट खूब शेयर की जा रही हैं तो उन्होंने ठहाके लगाए होंगे कि एक ईमेल भेजा और भारत में सोशल मीडिया यूजर्स इतने 'व्यस्त' हो गए! वास्तव में ऐसे अपराधी इंटरनेट का इस्तेमाल हथियार के तौर पर करते हैं और जो लोग उनके 'निशाने' पर होते हैं, उन्हें पता ही नहीं चलता कि वे 'शिकार' हो गए हैं। खुराफातियों/आतंकवादियों ने बहुत दूर/विदेश में बैठकर लोगों के 'दिमागों' से खेलने की कोशिश की। यह एक तरह का 'सूचना-युद्ध' है, जिसके उद्देश्यों को विफल करने के लिए हर राज्य की पुलिस को ठोस कदम उठाने होंगे। स्कूल संचालकों के साथ समय-समय पर बैठकें की जाएं और यह सुनिश्चित किया जाए कि धमकीभरे किसी भी पत्र/ईमेल/संदेश आदि की सूचना पुलिस को जरूर दें, लेकिन उसके बाद यह मामला सोशल मीडिया पर नहीं आना चाहिए। बच्चों को कक्षाओं से बाहर निकालें तो कोई ऐसा प्रयोजन बताएं, जिससे उनमें और अभिभावकों में भय न फैले। सोशल मीडिया पर नजर रखें और अफवाह फैलाने वाले अकाउंट्स पर कार्रवाई करें। एक निश्चित अवधि के बाद छोटी-सी सार्वजनिक सूचना दी जाए कि ऐसी धमकी मिली थी और वह फर्जी पाई गई। मामले को सनसनीखेज बनाने से बचा जाए। स्कूलों में सीसीटीवी कैमरे जरूर लगाए जाएं। समय-समय पर मॉक ड्रिल भी करवाई जाएं। देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी सिर्फ सुरक्षा बलों और जांच एजेंसियों की नहीं, बल्कि हर नागरिक की है। ऐसी धमकियों पर घबराहट भरी प्रतिक्रिया देने के बजाय दृढ़ता दिखाएं और अपने सुरक्षा बलों व जांच एजेंसियों पर भरोसा रखें।

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