प्रमुख सॉफ्टवेयर निर्माता कंपनी माइक्रोसॉफ्ट का यह बयान कि 'इस साल भारत, दक्षिण कोरिया और अमेरिका सहित जिन देशों में आम चुनाव होने हैं, वहां चीन अपने हितों को साधने के लिए एआई आधारित सामग्री का निर्माण और प्रसार कर सकता है', संबंधित देशों की सरकारों और आम जनता के लिए उल्लेखनीय चुनौती को बयान करता है। चीन के संबंध में ऐसे अनुमानों व आशंकाओं पर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए, क्योंकि इस देश का इतिहास ऐसी घटनाओं से भरा पड़ा है। खुराफात और दुष्प्रचार चीनी शासक वर्ग के चरित्र का हिस्सा हैं। आज जब इंटरनेट और एआई का बोलबाला है तो चीन इन्हें आजमा सकता है। जब विज्ञान ने इतनी प्रगति नहीं की थी, तब तत्कालीन चीनी नेतृत्व दूसरे तौर-तरीकों से जनमानस पर कब्जे की कोशिशें करता था। उदाहरण के लिए, जब चीन ने तिब्बत को हड़पा तो तिब्बतियों ने इसका तीखा विरोध किया था। इसके बाद चीन ने ऐसे पोस्टरों का प्रचार-प्रसार किया, जिनमें यह दावा किया गया था कि अब तिब्बत की आम जनता को पर्याप्त खाना मिल रहा है, जो पहले एक सपना ही था। पूरा देश हड़प कर रोटी देने का दावा चीन की दुष्प्रचार मंडली ही कर सकती है! चीन अपने राष्ट्रपति को भी इस तरह पेश करता है कि दुनिया की हर समस्या का समाधान उन्हीं के पास है। जब वुहान में कोरोना संक्रमण फैल रहा था, तब राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कुछ तस्वीरें सोशल मीडिया में वायरल हुई थीं। उनमें यह दावा किया गया था कि वे जनता का दु:ख-दर्द जानने और उसका हौसला बढ़ाने के लिए आए हैं। हालांकि इस दावे पर भी सवाल उठते रहे हैं। ऐसे आरोप हैं कि इससे पहले यह सुनिश्चित किया गया कि कोई भी व्यक्ति रास्ते में कहीं दिखाई न दे। सुरक्षाकर्मियों ने हथियारों के दम पर सबको घरों में कैद कर दिया था। उसके बाद शी जिनपिंग आए और दो-चार फोटो खिंचवाकर चले गए। सोशल मीडिया में माहौल बन गया कि चीनी राष्ट्रपति कोरोना से भी नहीं डरते!
निस्संदेह एआई आधारित सामग्री से चुनावों को प्रभावित करने की कोशिशें की जा सकती हैं। किसी नेता के बयान को काटकर आधा-अधूरा प्रसारित करने, फोटो के साथ ग़लत समाचार लिख देने, मनगढ़ंत बातें जोड़ देने, असत्य घोषणाएं करने, अफवाह उड़ाने, मिलते-जुलते चेहरे के साथ फर्जी वीडियो बनाने से लोगों को भ्रमित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, साल 2019 के लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद विभिन्न वॉट्सऐप समूहों में एक पोस्ट बहुत तेजी से वायरल हुई थी। उसमें एक खुफिया एजेंसी के कथित सर्वे का उल्लेख कर चुनाव नतीजों का दावा किया गया था। जो लोग चाहते थे कि चुनाव नतीजे ऐसे ही आएं, वे उस पोस्ट को खूब शेयर कर रहे थे। चूंकि 'खुफिया एजेंसी' का नाम दिया गया था, इसलिए लोगों ने जल्दी विश्वास भी कर लिया। हर आयुवर्ग के लोग उसे पढ़कर हाथोंहाथ आगे बढ़ा रहे थे। बाद में खुलासा हुआ कि वह सर्वे फर्जी था। बड़ा सवाल है- 'अगर खुफिया एजेंसियां सर्वे कर उसकी रिपोर्ट, वह भी आंकड़ों सहित, जनता के लिए यूं सोशल मीडिया समूहों में पोस्ट करने लग जाएं तो वे खुफिया कहां रहीं?' निश्चित रूप से ऐसी पोस्ट के पीछे खुराफाती लोग या संगठन होते हैं, जो चाहते हैं कि लोगों को भ्रमित किया जाए। इसी तरह, जब रूस ने यूक्रेन पर हमला बोला था तो सोशल मीडिया पर पुतिन समर्थक मीम्स की बाढ़-सी आ गई थी। उनमें रूसी राष्ट्रपति को बहुत बहादुर, देशभक्त, रूसी गौरव का रक्षक और अजेय बताया गया था। ऐसे आरोप लगाए जाते हैं कि वे मीम्स रूसी सरकार ने बनवाए थे और उन पर काफी धन खर्च किया गया था, ताकि पुतिन के पक्ष में माहौल बना रहे। इन घटनाओं से सबक लेते हुए, भारत में लोकसभा चुनाव के दौरान सोशल मीडिया पर 'नजर' रखकर भ्रामक सामग्री को निष्क्रिय करना सुनिश्चित किया जाना चाहिए।