सतर्क रहे बांग्लादेश

बांग्लादेशी प्रधानमंत्री ने भारत-विरोधी तत्त्वों को भारतीय साड़ियां जलाने की चुनौती देकर इस कथित मुहिम की पोल खोल दी

कोई भी विवेकशील बांग्लादेशी नहीं चाहेगा कि भारत के साथ उसके देश के संबंध तनावपूर्ण हों

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपने देश में भारतीय उत्पादों के बहिष्कार की कथित मुहिम चलाने वाले तत्त्वों को जिस तरह आड़े हाथों लिया, वह सराहनीय है। वास्तव में भारतीय उत्पादों के बहिष्कार के नारे लगाना और लोगों को उकसाना तो एक बहाना है। इनका असल मकसद दोनों देशों के बीच संबंधों में बुरी तरह कड़वाहट घोलना है। ये मालदीव के राष्ट्रपति मुइज्जू के नक्शे-कदम पर चलना चाहते हैं। एक ऐसा देश, जिसे भारत ने जुल्म से मुक्ति दिलाई, अपने सैकड़ों सैनिकों का बलिदान दिया, समय-समय पर आर्थिक सहायता दी, प्राकृतिक आपदाओं के दौरान सबसे पहले मदद पहुंचाई, विभिन्न सुविधाओं के साथ अर्थव्यवस्था को मजबूती दी ... अब उसी देश में कुछ लोग भारत के विरोध में नारेबाजी कर रहे हैं! स्पष्ट है कि बहिष्कार की इस कथित मुहिम को हवा देने वाले लोग या तो भ्रमित हैं या उन्होंने अपने ही देश का बेड़ा गर्क करने के लिए किसी से गुप्त समझौता कर लिया है। कोई भी विवेकशील बांग्लादेशी नहीं चाहेगा कि भारत के साथ उसके देश के संबंध तनावपूर्ण हों। आज बांग्लादेश कई क्षेत्रों में जिस तरह अच्छा प्रदर्शन कर रहा है, उसकी जीडीपी, मुद्रा, पासपोर्ट की स्थिति मजबूत हो रही है, उसके पीछे भारत का बड़ा योगदान है। दिसंबर 1971 में पाकिस्तान की फौज ने बांग्लादेश को खंडहर बनाकर छोड़ा था। उस समय भारत ही था, जिसने इस पड़ोसी देश के नवनिर्माण में हर तरह से सहयोग दिया था। बांग्लादेश की नौजवान पीढ़ी को नहीं मालूम होगा कि भारतीय डॉक्टरों ने वहां दिन-रात काम करते हुए जरूरतमंदों का मुफ्त इलाज किया था। आज भी बांग्लादेश में किसी जटिल सर्जरी का मामला आता है और उसकी सरकार अनुरोध करती है तो भारतीय डॉक्टर एक फोन कॉल पर उस मरीज का जीवन बचाने के लिए तैयार हो जाते हैं।

बांग्लादेशी प्रधानमंत्री ने भारत-विरोधी तत्त्वों को भारतीय साड़ियां जलाने की चुनौती देकर इस कथित मुहिम की पोल खोल दी है। इसके पीछे बीएनपी है, जिसने हमेशा भारत-विरोधी रुख अपनाया है। जब यह पार्टी सत्ता में थी, इसने बांग्लादेश में भारत-विरोधी तत्त्वों को खूब बढ़ावा दिया था। इसके कई नेता और कार्यकर्ता साल 1971 के युद्ध के दौरान गंभीर अपराधों में लिप्त रह चुके हैं। इस पार्टी को पाकिस्तान में बहुत पसंद किया जाता है। खासतौर से पाक फौज और आईएसआई के अधिकारियों के लिए तो यह आंखों का तारा है! ऐसे में अगर बीएनपी भारतीय उत्पादों के बहिष्कार की बात करे तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। हां, अगर बहिष्कार करने की ठान ही ली है तो ऐसा पूरी तरह करें। भारत से आने वाले मिर्च-मसालों, सब्जियों, चीनी, गुड़, तेल को छोड़ें और बेस्वाद खाना खाएं। वाहनों, उनके कल-पुर्जों से दूरी बनाएं और बैलगाड़ी पर सफर करें। मशीनरी, बिजली के उपकरणों, रसायनों, लोहा, विभिन्न धातुओं का भी इस्तेमाल करना छोड़ें और पाषाण युग में जीने की आदत डालें। इतना ही नहीं, चाय-कॉफी, प्लास्टिक सामग्री, मेवे, शहद, डेयरी उत्पाद, पेट्रो उत्पाद, कृषि उत्पाद, आभूषण, दवाइयां ... और वे सभी चीजें, जो भारत बहुत कम कीमत पर बांग्लादेश को देता है, उनका भी बहिष्कार करें और अन्य देशों से ऊंची कीमतों पर खरीदें। इसके बाद एक महीने में आटे-दाल का भाव मालूम हो जाएगा। बांग्लादेश के बुद्धिजीवी वर्ग की जिम्मेदारी है कि वह अपने देश में ऐसे लोगों को शिक्षित करे, जो किसी के बहकावे में आकर भारत से संबंध बिगाड़ने को आमादा हो जाते हैं। बांग्लादेश में भारतीय उत्पादों का बहिष्कार करने संबंधी नारे क्षणिक प्रचार तो दिला सकते हैं, लेकिन कालांतर में ये इस पड़ोसी देश की शांति और समृद्धि के लिए घातक ही सिद्ध होंगे। बांग्लादेश को सतर्क रहना चाहिए।

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